मिली ही नही सुख धारा जीवन में.. =======================
गरीबी मिली जन्मते ही घर के द्वार, अपयश मिला उच्च शिक्षा केन्द्र के द्वार, सब कुछ मिला जीवन में, पर शिक्षा का रहा अभाव जीवन में!
ज्यू ज्यू जीवन आगे बढा, हुई दोस्ती ऐसी दु:ख से, हर चौराहे पर मिलन हुआ, दृष्टि गोचर हुआ दु:खों का अंबार!
दु:ख से भीगे नयन तरसते रहे, सुख सरिता की करते रहा तलाश, न लहर दिखी ना बहता पानी, आभाष हुआ तपती वाष्प लहरों से!
प्यासा मृग समान भटका रेगिस्तान में, बहती गर्म हवाओं की लहरे दिखी पानी समान, कछू हाथ न आया दौड़ा पीछे कोस चार, प्यासा था प्यासा ही रह गया दुखी मृग समान!
देखा बार बार धन दौलत को, अनुभव से तोला अनेक बार, न सुख था हिरे जवाहरत में, न आशा फलित हुई ना मन में बही सुख की धार!
बचपन झुलस गया दु:ख भरी धार, यौवन भीगा परिश्रम से पसीने की धार, सपने मन के खेल न पाए होली,दीवाली जीवन की नैया अटकी है अब मझधार
तिमिर हो कितना हि गहरा, सुर्य को तो उगना हि पड़ेगा, प्रातःकाल की रोशनी को आने से रोक सका न कोई!
मेरी कुंडली में स्थित ग्रहों का अमंगल योग है, तो क्या कविताएं लिखना छोड़ दूँ, हो समय मुझ पर कितना हि भारी, रंज को एक न एक दिन रुकना हि पड़ेगा!
द्वार पर फूटा निराशा का अंबर, पारब्ध का शेष फल भोग रहा हूँ, आशा अभिलाषा कुवांरी ही मर गई, सब कुछ मिला पर न मिली सुख की धार…..
मैं खेलते रहा खेल तरहा तरहा के, कष्ट बड़े आएं जीवन में अपार, पारब्ध के दु:ख आए बार बार, हर परिस्थितियों से गुजरा बारंमबार!
अंधेरा घना छा गया है तो, एक दीपक तो जलाना पड़ेगा, अब आएंगे समाज के मेले, सबकों फिर साथ हि चलना पड़ेगा!! गुरु संकेत…… लाख पहरा हो प्रकाश पर, रंज को रुकना हि पड़ेगा सुर्य को प्रातःकाल में उगना हि पड़ेगा, फुलों को बाग में खिलना हि पड़ेगा…..
सब कुछ मिला जीवन में, पर न मिली सुखकी धार………❓
जय श्री विश्वकर्मा जी की लेखक/कवि: दलीचंद जांगिड सातारा महाराष्ट्र मो: 9421215933
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