कवि दलीचंद जांगिड सातारा की कलम से: लिख दूं इतिहास की किताब

आओ कुछ देर साथ चलें एकान्त में दुनिया की भीड़ से कही दूर चलें।

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लिख दूं इतिहास की किताब

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आओ कुछ देर साथ चलें एकान्त में
दुनिया की भीड़ से कही दूर चलें
तुम जान लो कवि के मन की बात
कवि जान ले तुम्हारे अंदर की बात
तब जाकर कही थोड़ी सी बात बने
तुम संस्कृति वर्तमान की बताओं

मैं रिती-रिवाज प्राचीन काल के बताऊं
दो अंतराल के रिश्तों को क्या नाम दूं
जब रिती-रिवाज लिखने बैठता हूँ
इस संस्कृति को इतिहास का नाम दे दूं
कुछ देर एकान्त में बैठकर बातें करें
आपस में नझदीकियां बढ़ाएं
इसी विश्वास पर एक किताब लिख दूं
तुम भरोसा करो मुझ पर
मैं विश्वास रखू तुम पर

एक दुसरे के मन की बात समझ ले
फिर लिख देता हूं इतिहास की किताब
तब जाकर कही थोड़ी सी बात बने
आओ कुछ देर साथ चले एकान्त में
दुनिया की भीड़ से कही दूर चलें
इतिहास की रचना दोनो मिलकर करे
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जय श्री विश्वकर्मा जी की
कवि दलीचंद जांगिड सातारा

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