दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: मैं निकला था एक शहर की ओर….. 

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मैं निकला था एक शहर की ओर….. 
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मैं पाली का रहने वाला हूं….
पाली के (खौड) गीत गाता हूं……
1200 K. M. दूर वीराने में
पाली तेरी याद आती है…..
कितनी नदीया, कितने पहाड़

कितने शहर,कितने मैदान पार वीराने में
मैं चला एक अनजान शहर की ओर
जहां मेरे सपनों का संसार हो
कुछ लोग मेरे साथ हो
मेरे धन्धे के साजीदार हो

अभावों की जीवन राह थी बड़ी कष्टदायी
समझोता करता रहा हर मुश्किलों से
था दूर देश अनजान, लोग थे अनजान
भाषा थी नई नवेली, शब्द अर्थ अज्ञान
जब कोई कहता है…..
पधारो मारे मरुधर देश

तब जन्मभूमि की याद जाग जाती है
अब मारवाड़ तेरी याद आती है
मैं शुकुन लेकर निकला था
एक सकून की तलाश में
एक गांव देहात गलियारे से

निकला था एक अनजान शहर की ओर
आशाओं की उस तलाश में
सपना मैंने देखा था अजीब-सा
काम धन्धे की भरमार हो
कुछ लोग मेरे साथ हो
जहां मेरी प्रगति का उजास हो

मुझे मेरी अभावों की जीवन राह
कहा से कहा ले आई है….?
1200 K. M. दूर वीराने में
पाली तेरी याद आती है
पाली का रहने वाला हूं….
पाली तेरे ही गीत गाता हूं….
एक रात मुझे सपना आया था
मेरे सम्पूर्ण जांगिड समाज के
धार्मिक प्रार्थना यज्ञ कार्य हो पूरण

मेरे शहर में विश्वकर्मा जी का मंदिर बने
पाच जिलो के समाज बंधूओं का
विचार विमर्श सहयोग साथ मिले तो
विश्वकर्मा जी का मंदीर बने बड़ भारी
आज्ञा मिली मेरे दादा गुरुजी की

जांगिड समाज सेवा समिति सातारा का
सर्व सहमति से 1994 में गठन हुआ
भगवान विश्वकर्मा जी की आज्ञा पाकर
मंदिर निर्माण कार्य जटपट शुरु हुआ
समाज बंधूओं की मनोकामना हुई पूर्ण
दो मंझिला विशाल भवन बना
बना उस पर शिखर मन मोहक

समाज बंधूओं का सपना हुआ साकार
सम्पूर्ण जांगिड समाज करने लगा
विश्वकर्मा जी की जय जय कार……
प्रेम से बोलो
सब मिलाकर बोलो
जोर से बोलो
जय विश्वकर्मा भगवान की
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जय श्री विश्वकर्मा जी री सा
लेखक/कवि: दलीचंद जांगिड़
अध्यक्ष: विश्वकर्मा मंदिर सातारा महाराष्ट्र
मो: 9421215933

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