कवि अशोक शर्मा की कलम से: नयन या नेत्रहीन

Title and between image Ad

नयन या नेत्रहीन

समझ जाता हूँ स्वभावो को मैं, अभावो के संघर्षों को
स्पर्शो को भाषा को , निष्छल हँसी और विश्वासो को
सब कुछ सीखा देती हैं वो आशाओ के आँखे मुझको
हाँ तू देख मुझे और मेरे चलते डरते कदमो को
क्या विषय ,क्या विश्वास, अपने जीवन की कसौटी को

गरल पिया ! सामजिक प्रिय परिजनों से तो क्या ?
कर्म संघर्ष सदा एकेला था , फिर हम क्या और तुम क्या!
नेत्रहीन हम नही है , तुम अब भी अंधकार में जीते हो
हाँ नही देख सकते होंगे! पर क्या तुम सब देख पाते हो?
अगर हाँ, तो क्यो रोज अन्यायों के आगे आँख मूंद लेते हो।

समझ जाता हूँ स्वभावो को मैं, अभावो के संघर्षों को ।।

अशोक शर्मा 

Connect with us on social media

Comments are closed.