दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: कर प्रणाली कैसी हो…..?

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राजा को प्रजा से कर (लगान) कैसे अल्प मात्रा में लेना चाहिए,……?
तब महा कवि तुलसीदास जी ने कही बात याद आती है……
बरसत हरषत लोग सब करषत लखै न कोइ
तुलसी प्रजा सुभाग ते भूप भानु सो होइ

राजा को प्रजा से कुछ अंश में कर ऐसे लेना चाहिए कि प्रजा को पता हि नहीं चले, जैसे सुर्य बरसात से गिरे हुए धरती पर के पानी को अपनी धूप के माध्यम से वाष्प बनाकर कुछ मात्रा में सोख लेता है वह नदी नालों तालाबों कुँओं बावड़ी से पानी सुर्य अपनी धूप (गर्मी) से पानी सोख लेता है, ओर तो ओर अपने (मनुष्य व पशुओं के शरीर से भी) शरीर से धूप के माध्यम से पानी सोख लेता है वह पता ही नही चलता है, यह टेक्स वसूली का प्रकृति तौर तरीका होता है……. वह जब ईश्वर बरसात के रुप में वापस लौटाता है तब सबकों पता चलता है वह पृथ्वी पर के हर जीव जन्तु ,पेड़ पौधों को आंनद ही आंनद आता है, बस इसी प्रकार शासनकर्ताओं को कर लेना वह वापस जन हित सेवार्थ में लौटाना चाहिए। बस इसी प्रकार हर मनुष्य को यह टेक्स आटे में नमक. (18% जी. एस. टी. टेक्स) की मात्रा जैसा देना चाहिए ताकि मानव जीवन की गतिविधियाँ (पीने का पानी, रस्ते, बिजली, यातायात के साधन) सुचारू रूप से चलाने के लिए धन की कमी ना रहे ।

इसी धन (पानी) को ईश्वर वापस सृष्टि को चलाने के लिए बरसात के रुप में वापस लौटा देता है जो पक्षी पशु व मानव व पेड़ पौधौ साथ ही हर जीव जंतू को उपयुक्त होता है। खाजगी संस्थाओं के धर्मशाळा,समाज के छात्रावास, स्कूल, मंदिर व सभागृह समाज के आदरणीय (भामाशाहों से ) दान दाताओं से दान के रुप में धन राशि ली जाती है वह समाज के प्रति घर से वार्षिक कर (वरसून , लगान ) के रुप में निर्धारित अर्थ सहाय्य लेकर इस प्रकार की खाजगी संस्थाएं चलाई जाती है ताकि किसी एक घर या व्यक्ति पर बोझा नहीं पड़ता है, सबका साथ सबका विकास साध्य हो, वह यह संस्थाएं सुचारू रूप से चलाई जा सके।

इस वार्षिक कर की मात्रा इतनी अल्प होनी चाहिए कि किसी को भी अचम्बित या दुखी नही होना पड़े वह सामने वाला हंसते हंसते यह वार्षिक कर (वरसून की रक्कम) दे सके। यह समाज चलाने का छोटा उदाहरण है ठीक इसी प्रकार का नियम व्यवस्था गांव की ग्राम पंचायत, से लेकर जिला, प्रदेश, व सम्पूर्ण देश चलाने वालों को नाम मात्र कर प्रणाली के तहत जमा धन राशि का इस्तेमाल आम जनता की दैन देनिक सुविधाओं के लिए सही जगह पर वह सही समय पर करना चाहिए। यही बात महा कवि तुलसीदास ने उपरोक्त चौपाई की दो लाईनो में कहने की बात राजा (शासन कर्ताओं) को उस काल खण्ड में कही थी वह आज भी उपरोक्त चौपाई कहावत प्रंसागिकी है, सबकों मानना चाहिए व इस अल्प कर से होने वाली जमा बंदी से सामुहिक जन हित के कार्य (रस्ते, शुध्द पेयजल, बिजली, स्वास्थ्य सेवाएं, अच्छी शिक्षा के विद्या के अर्जित करने के केन्द्र) करने चाहिए।

शासनकर्ते नियम बनाये वह प्रशासन कर्ते समाज (देश की जनता) की व्यवस्था चलाए व देश को हर तरह से समृद्धि की ओर ले जाए यही देश की जनता की चाहत होती है, वर्तमान में देश आगे बढ रहा है यह एक अरब तीस करोड़ जन संख्या की सामुहिक परिश्रम की परिकाष्ठा का फल ही तो है।
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जय श्री विश्वकर्मा जी की
लेखक/कवि: दलीचंद जांगिड सातारा महाराष्ट्र
पैत्रिक गांव खौड जिला पाली राजस्थान
मो: 9421215933

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3 Comments
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