कवि दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: कवि मन भटकत भ्रान्ति का प्रतिक

कवि किसी ना किसी कारण समाज के लिए अपना जीवन यापन करना चाहता है तब परोपकार लेखन (साहित्यकारों से) वालों से जुड़कर वह साथ ही कवि बिरादरी (कवि कुळ) से जुड़कर यह विद्या हासिल करता है।

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✍️ एक लेखक लिख देता है कवि के मन बात…..
कवि मन भटकता रहता है
रात में तन सोता जरुर है
पर……?
कवि मन चलता रहता है
रात में आए विचारों से एक कविता बन जाती है
जो सुबह कागज के पन्नों पर उतर आती है
इसीलिए कहता रहता हूं
“कवि मन भटकत भ्रान्ति का प्रतिक है”

कवि किसी ना किसी कारण समाज के लिए अपना जीवन यापन करना चाहता है तब परोपकार लेखन (साहित्यकारों से) वालों से जुड़कर वह साथ ही कवि बिरादरी (कवि कुळ) से जुड़कर यह विद्या हासिल करता है। तब माँ शारदे की उपासना करता रहता है। जब जाकर अपने मकसद में उत्तीर्ण हो पाता है, लय, ताल, व्याकरण, शास्त्रों का ज्ञान, लगातार वाचन प्रवृति व वेद शास्त्रों की जानकारी रखने वाला व्यक्ति ही एक समाज को अच्छी कवि विचार धारा समाज को दे पाता है जो हरदम माँ शारदे को प्रणाम कर हाथ लिए कलम लिखने बैठ जाता है। तब वह एक अलौकिक दुनिया में प्रवेश कर एक ज्ञान के अथाग गहरे समुन्दर से माणिक मोती खोज लाता है। फिर दुनियां वालों को माँ शारदे से मिला इस प्रसाद का प्रचार-प्रसार करता है। वह कहता है मुझे यह अमोल मोती मिले है।
कवि एक गहरी विचार धारा का धनी है। जो हर रोज कुछ नया नया खोजता रहता है, भुतकाल को दर्शाता है वर्तमान काल को अच्छी तरह से सजाता है वह साथ ही भविष्य में समाज में होने वाले बदलाव से रु-बरू कराता रहता है। यह सभी माँ शारदे का आशिर्वाद पाकर सम्भव होता है, विद्या की देवी सरस्वती के बिगर यह सब काम अधूरा रह जाता है जी।

कहावत यह भी प्रचलित है
करत करत अभियाष
जड़ मति होत सुजान
रस री आवत जात तै
सिल पर पड़त निशान

बस यही एक कवि की कक्षाएं होती है जो ध्यान लगाकर अभियाष करे वो इन कक्षाओं में उतिर्ण हो जाता है, वह समाज को एक अच्छा साहित्य दे सकता है जी……

कवि पांच तत्वों से बना मिट्टी का पुतला ही तो है, समय पुरा कर सौ सवा सौ बर्ष तक अपना जीवन यापन कर इस संसार से बिदाई ले लेता है पर उसका लेखन साहित्य बनकर अमर रह जाता है, कवि अपने लेखन में शब्दों का इस्तेमाल करता है ओर यही शब्द ब्रह्म होते है यह शब्दों की महिमा हमारे सभी शास्त्रों ने गाई है इसलिए मैं हमेशा कहता रहता हूं की शब्द ब्रह्म स्वरुप है शब्दों की कोई समय सीमा नहीं होती है और वह सदा अमर रहते है।

कविता की आयु एक हजार वर्ष से लेकर अनेकों बर्षो तक जिन्दा रहती है तभी तो लोग एक हजार वर्ष पूर्व में दसवी सताब्दी में लिखी गई पहली कविता आलाखण्ड आज भी लोग ध्यान पूर्वक पढते है फिर दौर आया संस्कृत भाषा का, इस समय में कवि लोगों ने नाटक व कविताएं लिखकर समाज की खुशियों में बढ़ोतरी की है, फिर दौर आया तीन सौ बर्ष पहले संत कवि तुलसीदास के समय में तब अवध भाषा (क्षैत्रीय भाषा उतर प्रेदेश की) को कवियों खुब अपनाया था, कवि तुलसी बाबा ने एक ग्रन्थ तुलसी रामायण की रचना की थी जिसको अनेकों लोगों ने घर घर में पढी है आज भी आंनद ले रहे है, ऐसे कवियों की महान परम्परा रही है, कवि कालिदास जी ने बहुत कुछ लिखा है ऐसे महान कवियों को मैं ह्रदय की गहराई से प्रणाम करता हूं, फिर अब वर्तमान में दौर चल पड़ा हिन्दी भाषा का, तब हिन्दी के कवि एक से बढकर अपना लेखन कार्य में महारथ हासिल कर लोगों में जीवन जीने का आंनद रस भर रहे है, जिसमें हमारे हिंदी के महान कवि श्रीमान कुमार विश्वास जी प्रथम नाम आता है, मैं उन्हें भी प्रणाम करता हूं वह हम जैसे छोटे कवि उनसे सजग ज्ञान पाते रहते है, उन्होंने हिन्दी जगत में वह वर्तमान में सभी युवाओं अपनी एक खास जगह बनाई है व हमें कुछ सिखने का अवसर प्रदान किया है, धन्य है वे हमारे कवि कुळ के मोतीयों से मंहगे कवि है फिर से उन्हें अपना गुरु मानकर प्रणाम करता हूं जी।

कहते कवि कभी स्वर्ग में नही जाता है
पर कवि जहा जाता है
वहा का सारा मोहल ही स्वर्ग बना देता है
यह होता है एक कवि का परिचय…..

मिडीया वाले, पत्रकार, समाज की पत्रिका के संपादक, वेव साईड वह यू ट्यूब वाले कवि को ढूड ही लेते है जी, वह जमकर लेख कविताएं छापकर समाज में फैलाते है जी, कारण इस कार्य में दोनो का हित है।

कहते है अच्छे हिरो को अच्छा फिल्म निर्माता चाहिए होता है ठीक इसी तरह एक अच्छे लेखक को एक अच्छा संम्पादक चाहिए तब यह दो पहियो वाली गाडी आरम से अपना सफर तय समय में निर्धारित स्थान (अपनी मंझिल पाने में) पर पंहुच जाती है, अब वर्तमान समय में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व प्रेस विज्ञप्ति का दौर चल रहा है जो इस में ढल गया समझ लो वो सारे जहा में रम गया।

गुगल पर, यू ट्यूब चेनल भी एक बड़ा ताकद वर मीडीया का अपना वर्सव होता है जो करोडों लोगों तक आपकी बात पंहुचाने का दमखम रखता है वह आपके लेखन को आपके करोड़ों फैन तक पहुंचा सकता है।

किसी को तल पे रखना, किसी को मध्य में रखना है वह किसी को ऊपर की पादान तक ले जाना है यह मीडिया वाले बड़ी खुब सुर्ती से लेखक व कवि के लेखन का तौल मौल कर ही अपनी पत्रिका में अपनी यू ट्यूब पर, अपनी वेव साईड पर स्थान देते है, इस कार्य में इनको महारथ हासिल होती है व होनी चाहिए कारण उनका भी हेतु साध्य होता है वह लेखक कवि का भी हेतु यही होता है की मेरी कविताएं अधिक से अधिक लोगों में पंहुचे वह पाठकों की संख्या बढ़े।

इसीलिए मैंने कवि मन को संज्ञा दी है की “कवि मन भटकत भ्रान्ति का प्रतिक”
कवि मन में चंचलता बालक के जैसी होती है, शब्दों के साथ बाल लिलाएं कर लोगों का मन जीत लेना उसका धर्म व पुरुषार्थ दोनो भी काम करते है।

समाज में घटित घटनाओं पर आधारित एक दृश्य (छीन) हूबो हूब खड़ा कर दिखाने की क्षमता का वह धनी होता है, माँ शारदे की कृपा बरसती रहती है, एक कवि की यही धन संपदा होती है, इसी की तलाश में कवि मन भटकता रहता है जी, वह अपने लेखों व कविताओं को आकार देता रहता है।

जय श्री विश्वकर्मा जी री सा
लेखक: कवि दलीचंद जांगिड सातारा महाराष्ट्र
पैत्रिक गांव
खौड जिला पाली राजस्थान
मो: 9421215933

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