दीपक आहूजा की कलम से: सच्ची तपस्या

सच्चा प्रेम तो, एक सच्ची तपस्या ही है, दिल में विराजमान, दिल में बसा ही है।

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सच्ची तपस्या

सच्चा प्रेम तो, एक सच्ची तपस्या ही है,
दिल में विराजमान, दिल में बसा ही है।

सहारा नहीं, विश्वास का साथ चाहता है,
सिर्फ़ प्रियतम से नहीं, ईश्वर से नाता है।

अपना सर्वस्व त्याग कर, पराकाष्ठा पाई,
तब कहीं जा के, हृदय में प्रसन्नता आई।

हर घट में प्रभु के, अंश को ही पाता है,
जन्मों की तपस्या से, यह बोध आता है।

गहरा प्रेम तो बस एक गहन अनुभूति है,
जिससे मिलो, उसे ही ये सुगंध छूती है।

दूसरे की पीड़ा में, अनुभव होती करुणा,
सुनाई देती है, हर हृदय में बजती वीणा।

काँटों पे चल के, यह प्रेम सफल होता है,
इसके सान्निध्य में त्याग हर पल होता है।

इस तपस्या से, व्यक्तिव कुंदन होता है,
सत्य मिलता है, मोह का बंधन खोता है।

दीपक आहूजा लेखक, कवि, उद्यमी और व्यवसायी।। 

 

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