दीपक आहूजा वालों की कलम से: नाचते मोर ट्रेंडिंग नाउकाव्यलोकताज़ा खबरें By Deepak Ahuja Last updated Jun 20, 2023 145 नाचते मोर सावन तो नहीं है, फिर मन में मोर क्यों नाचते, मृदंग बजा-बजा कर, दिलों में सुर क्यों साधते। ऋतु तो है हेमंत की, फिर क्यों स्मृतियाँ गर्म हैं, शिशिर की प्रतीक्षा में, इस जीवन का मर्म है। तृष्णा का यह चक्र, हर मनुष्य में वास करता, पीकर यह प्याला अमृत का, क्यों है मरता। Also Read सोनीपत: छत से फेंक कर युवक की हत्या मामले में आरोपी… सोनीपत: ड्रेन नंबर 6 का किनारा तोड़ा गंदा पानी कालाेनियों… काल तो है कलियुग का, सब स्वार्थ निहित हैं, फिर भी इन श्वासों से, मल्हार गाता पथिक है। संवेदनाएँ हैं जगती, इस संवेदनशील हृदय में, वर्तमान में लौ है जगती, डूब कर हर कृत्य में। महकती मुस्कुराहट, क्या छुपाती कोई भेद है, जान लिया, मान लिया, इसे समझना निषेध है। Dancing PeacocksDeepak Ahuja
Comments are closed.