दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: श्रृंगार सुन्दर है कविता का
ऐ मेरी प्यारी-सी कविता, शब्दों से श्रृंगार करु तेरा।
श्रृंगार सुन्दर है कविता का
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ऐ मेरी प्यारी-सी कविता
शब्दों से श्रृंगार करु तेरा
तू साथ रहती है तो
मान बढाती है मेरा
संपादकों के फोन आते
पहले नाम लेते तेरा
तब मैं कहता हूं ओ मेरे भाई
कविता लिखकर हो गई मेरी तैयार
अभी उस पर 16श्रृंगार चढाना बाकी है
शब्दों के अलंकार चढाना बाकी है
कुछ आभुषण बाजार से लाया हूं
कर्णफूल,नाकफेणी, बिंदी,टीक्का
माथे पर लटकाना बाकी है
नवलखा हार, हिरे जड़ित अंगुठी
पौशाक चमकदार कोर, कशीदाकारी
टिकलीयां चिल्वर गोल्डन बरक
भड़क दार, रेशमी झूलती झालर
यह पौशाक परिधान करनी बाकीहै
आभूषणों से सज धजकर परिपूर्ण
होकर कविता मेरी जब किसी
मँगनिज अखबार की आँफीस पंहुचेगी
स्वागत अजब अनूठा होगा
छपकर पहुंचेगी भारत के
हर प्रांत के जन जन के घर में
जन जन के लालन पालन से
यही कविता महान होती है
अनुभव से जो प्राणवान होती है
कवि ह्रदय तल से उठते भाव
जुबा पर आते कविता जवान होती है
यही कविता का सुंदर श्रृंगार है
समय पाकर ही कविता महान होती है
यही कवि कलम का कमाल है
यही कविता की जय जयकार है
यही कविता का सोलाह श्रृंगार है
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नोट: कविता स्त्रीलिंग होने के कारण ही श्रृंगार को प्रमुखता दी गई है, तब मन घड़ीत शंकाएं शुन्य हो जाती है।
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जय श्री विश्वकर्मा जी री सा
कवि: दलीचंद जांगिड सातारा महाराष्ट्र
मो:9421215933
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