हिन्दी में लिखी गई कविताओं का अपना अलग से एक स्थान होता है।
उर्दू मे गीत गझल नगमे शेर शायरी यह उनकी जगह पर है दोनो के श्रौता गण भी अलग से है।
*पर हिन्दी की क्या बात करु, जब भी हिन्दी में कविता लिखता हूं तब जो मां के गोद मे नन्हा सा बालक खेलते हुऐ आनन्द का अनुभव करता है वही आनन्द हिन्दी के कवि को हिन्दी मे कविता लिखते समय ऐहशास होता है।*.
तभी तो खुले मन से कहता हूं की…
हिन्दी मां का जाया हूं
हिन्दी मे ही कविताएँ लिखता हूं
कहने को कविता मिली
रहने को मिला हिन्दुस्तान
बिखेरता हूं कविताऐ ऐसे
फूलों का गालिशा सजा हो जैसे
आप खुश रहे सदा
इसी मे खुशी मानता हूं मेरी भी
दूध से बनता दही
दही मन्थन से निकलता घी
इसी तरहा कविता लेती आकार
जब गौता ह्रदय मे लगाता हूं
हिन्दी के शब्दों को चुन चुन लाता हूं
शब्दों को एक धागे मे पिरोता हूं
तब कविता बन जाती है
मन प्रसन्न प्रफुल्लित हो जाता है
वो ही मां शारदे का प्रसाद
आप तक पहुंचाता हूं
यही अमर अमिट पुंजी है मेरी
यही साथ ले जाऊंगा
******************************
हिन्दी दिवस पर आप सभी को हार्दिक बधाई करु हिन्दी मां को प्रणाम् साथ मे आपको भी……
=======================
जय श्री विश्वकर्मा जी री सा
लेखक: दलीचंद-जांगिड़ सातारा (महाराष्ट्र)
मो: 9421215933
Comments are closed.