दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: शिक्षा ही एक प्रगति का विकल्प

हर ठेकेदारों को कार्य कूशल कारीगारों का नहीं मिलना जैसी समस्या वर्तमान में हर गांव, हर शहरों में हो गई है व आय घटकर बहुत ही कम हो गई है तथा नई पीढ़ी की पसंद की विचारधारा से यह लाईन (लकड़ी का काम) बाहर हो चुकी है।

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लेखक की कलम से…….

शिक्षा ही समाज विकास का एक महत्वपूर्ण विकल्प है जो समाज को आगे प्रगति पथ पर ले जा सकता है यह समय अब आ चुका है। जो अब समाज को स्विकार करना होगा व इस पर हर माता-पिता को ध्यान देना चाहिए कि वे अपने बच्चों को उच्च शिक्षा व संस्कार दे। वह समाज के अगुवाई करने वाले समाज के आदरणीयों से मेरा यही निवेदन रहेगा कि शिक्षा पर जोर दिया जाए व शिक्षा प्रोत्साहन के कार्य कर्म अधिक से अधिक समाज में चलाए जाये। ताकि हर रुडी रिवाज व कुरितीयों से समाज अपने आप (स्वयंम) बाहर निकल जायेगा। पैत्रिक धन्धा (लकड़ी कार्य) कम हो गया व अन्य समाज के लोग करने लग गये है। इस कारण लकड़ी कार्य करने की तय मजुरी दरों की स्पर्धा शुरु हो गई है।

हर ठेकेदारों को कार्य कूशल कारीगारों का नहीं मिलना जैसी समस्या वर्तमान में हर गांव, हर शहरों में हो गई है व आय घटकर बहुत ही कम हो गई है तथा नई पीढ़ी की पसंद की विचारधारा से यह लाईन (लकड़ी का काम) बाहर हो चुकी है। यह भी देखने में आ रहा है तथा अब नई पीढ़ी यह स्विकार नही करेगी। साथ ही भाई भाई के बटवारे से खेती बाड़ी की जमीन भी हर किसी परिवार के पास प्रयाप्त नही रही है। जिस से घर का वार्षिक खर्च चला सके।

साथ ही समाज की सोच भी बदल रही है। वर्तमान में लड़के/लडकियां खेती बाड़ी को प्राथमिकता भी नही दे रहे है। तब एक ही विकल्प समाज व पालकों (माता पिता) के सामने बचा है वह है शिक्षा।

उच्च शिक्षा को ही विकास व परिवार में आय का प्रमुख साधन (जरीया) मानकर हर माता पिता को अपने बच्चों पर अधिक खर्च करना चाहिये, यही भविष्य में हर युवा/युवतियों का भाग्य निर्मिती का कँपिटल (भांडवल) माना जायेगा, व इसी शिक्षा से ही अपने परिवार व समाज का विकास संम्भव है।

नम्बर दो पर व्यौपार व उत्पादन क्षैत्र में नव युवा उच्च शिक्षा के पुरे होते ही अपनी अपनी क्षमता के अनुसार अपने आप प्रवेश कर लेगा। अपने भविष्य का निर्णय वह स्वयम तय कर लेगा। इस विषय पर माता-पिता को मन में तनिक शंका रखने की जरुरत नही रखनी चाहिए……..

शिक्षा ही उज्जवल भविष्य ज्योति है
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जय श्री विश्वकर्मा जी री सा
लेखक: दलीचंद जांगिड सातारा महा:
मो: 9421215933

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