ग्राउंड रिपोर्ट: सोनीपत में पबनेरा के लोगों की 10 साल में बदल गई लाईफ स्टाइल

सोनीपत की तहसील गन्नौर के अंतर्गत आने वाला गांव पबनेरा है इसमें लगभग 2000 मतदाता हैं। 3500 की जनसंख्या है। इस गांव में पीएचसी और ई लाइब्रेरी की पूरी नहीं की गई। इस गांव में पंचायती जमीन नहीं जिससे राजस्व आए।

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  • पबनेरा में ज्यादा तर ऐसे परिवार हैं जहां आजादी के बाद पहली बार नौकरी 10 साल में मिली हैं
  • पबनेरा से पहले आईपीएस कुलदीप सिंह बने हैं
  • स्वीटी और सुमनलता ऐसी बेटियां जिनकों परिवार में पहली सरकारी नौकरी मिलने का श्रेय मिला
  • पबनेरा के वोटरों ने भाजपा को 85 प्रतिशत वोट दिए थे विधानसभा और लोकसभा में
  • आरोप यह है कि उनके मत का सम्मान यहां जनप्रतिनिधियों ने नहीं किया
  • पबनेरा की सार्वजनिक मांग पीएचसी और ई लाइब्रेरी की पूरी नहीं की
  • पांच साल में केवल एक गली और एक चौपाल का कमरा बना
  • पबनेरा की 100 एकड़ भूमि कट कर यमुना में चली गई कोई मुआवजा नहीं मिला

सोनीपत, (अजीत कुमार): हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित ग्राम पंचायत पबनेरा है। यहां ज्यादातर लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। यहां पर रोजी रोटी के लिए दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर हैं। लेकिन यहां के लोगों की जिंदगी में दस साल में लोगों का लाइफ स्टाइल बदला है। इस गांव में जहां 2013 से पहले मात्र 4 लोगों को सरकारी नौकरी मिली थी। वहीं 2014 के बाद सरकारी नौकरी पाने वालों की संख्या लगभग 20 हुई है।

Ground report: Life style of people of Pabnera in Sonipat changed in 10 years
गन्नौर विधानसभा का गांव पबनेरा।

विकास के नाम पर निराशा मिली
सोनीपत की तहसील गन्नौर के अंतर्गत आने वाला गांव पबनेरा है इसमें लगभग 2000 मतदाता हैं। 3500 की जनसंख्या है। इस गांव में पीएचसी और ई लाइब्रेरी की मांग भी पूरी नहीं की गई। इस गांव में पंचायती जमीन नहीं जिससे राजस्व आए। पांच साल में केवल एक गली पक्की बनी, प्रजापत चौपाल में एक कमरा बनवाया गया। पांच वर्ष के दौरान डीप्लान आदि सब के मिला 30 लाख रुपये पंचायत को विकास के मिले हैं।

जनप्रतिनिधियों ने यहां वापस मुड़कर भी नहीं देखा
इसको लेकर यहां लोगों में गुस्सा है कि जनप्रतिनिधियों ने उनके वोट का सम्मान नहीं किया। लोगों का कहना था कि विधान सभा और लोकसभा चुनाव में भाजपा को पबनेरा के मतदाताओं ने 85 प्रतिशत वोट दिए थे। लेकिन जनप्रतिनिधियों ने यहां वापस मुड़कर भी नहीं देखा ना ही उनकी मांगों को पूरा करने के लिए दिलचस्पी दिखाई। यह दु:खद है।

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पबनेरा गांव की सरपंच पुनम।

पीएचसी और ई-लाइब्रेरी की मांग भी पूरी नहीं की: सरपंच पुनम
पबनेरा की सरपंच पुनम का कहना है कि उनकी मांग ई लाइब्रेरी की इसलिए की गई थी कि यहां की बहु बेटियां पढाई कर सके ताकि अपना कैरियर संवार पाएं। लेकिन उनकी काेई सुनवाई नहीं हुई। लाइब्रेरी होने से कंपटीशन टेस्ट की तैयारी करती हैं तो उन्हें गन्नौर, सोनीपत शहर में जाना पड़ता है। शहर यहां पर से काफी दूर पड़ता है। देखो जी विकास की बात करें तो एक गली और एक कमरा बना है यह 5 साल का यह विकास है। इसी को उपलब्धि कह सकते हैं।

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गांव पबनेरा के कलविंदर।

युवाओं को नौकरियां मिलना बहुत बड़ी उपलब्धि
विकास के नाम पर जनता सरकार से निराश हुई है लेकिन एक बहुत बड़ा सकारात्मक पहलू यह रहा है कि इस सरकार के दौरान जो सरकारी नौकरी बिना पर्ची बिना खर्ची के मिली हैं। जो योग्य कैंडीडेट थे उनको योग्यता के आधार पर नौकरयां मिली और इससे लाइफ स्टाइल बदला है। इस गांव के युवाओं को नौकरियां मिलना बहुत बड़ी उपलब्धि मानी गई है।

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गांव पबनेरा के तलविंदर की पत्नी संतोष देवी।

टैलेंट का सम्मान तो हुआ, पुलिस में लगे, अध्यापक भी बने
इस बात को तो मानेंगे कि टैलेंट गांव में भी है अब जिनको नौकरी मिली उनमें रोहतास पुत्र महावीर, प्रियंका पुत्री राजबीर, नीरज कुमार पुत्र किरण सिंह, यह प्रोविजनल सब इंस्पेक्टर लगे, सोनू पुत्र छत्रपाल लिपिक लगे हैं। पिंटू पुत्र दयानंद अध्यापक लगे हैं, संतोष कुमारी पत्नी तलविंदर की केंद्रीय विद्यालय में नौकरी लगी है। प्रवीण पुत्र करतार सिंह, कुलदीप पुत्र कर्मवीर, दीपक पुत्र रिजकराम इनकी हरियाणा पुलिस में नौकरी लगी है।

Ground report: Life style of people of Pabnera in Sonipat changed in 10 years
हरियाणा पुलिस की जवान सुमनलता अपने परिवार के साथ।

तीन पीढियों में परिवार में पहली बार सरकारी नौकरी पाने वाली बनी बेटियां
पबनेरा की दो ऐसी बेटियां जिनके परिवार में आजादी के से लेकर तीन पीढियों में अभी तक कोई सरकारी नहीं थी। लेकिन इन बेटियों को पहली बार सरकारी नौकरी में जाने का श्रेय मिला है। बाबुराम की बेटी सुमनलता, राजसिंह की बेटी स्वीटी इनको हरियाणा पुलिस में नौकरी लगी है। रीना पुत्री जगन, एकता पुत्री रविंद्र कुमार की दिल्ली पुलिस में नौकरी लगी है। आशीष पुत्र सोहन पाल इनके पिता शहीद हुए तो उनके बेटे को सीआरपीएफ के अंदर नौकरी मिली। इसी गांव में कुलदीप सिंह को पहले आइपीएस बनने का गौरव मिला है।

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