दलीचंद जांगिड सातारा वालों की कलम से: मैं राजस्थान हूं……
पीड़ाएं मेरी पर्वत सी हो गई है, अब ये पीगलनी चाहिए।
मैं राजस्थान हूं……
पीड़ाएं मेरी पर्वत सी हो गई है
अब ये पीगलनी चाहिए
एक नहर हिमालय से सुखे प्यासे
राजस्थान के लिए निकलनी चाहिए
खेत जमीन बहुत है मेरे पास
बिन पानी उगा ना पाऊं
अनाज देश वासीयों के लिए
पेट भर मजदूरी मिली नहीं
मेरे निवासी प्रदेश वासीयों के लिए
परिवार मेरा बिखरता चला गया
करते करते मजदूरी की तलाश
सम्पूर्ण भारत वर्ष में फैल गया
ना सोना मांगू ना चांदी मांगू
चार कल कारखाने मांगू
चार पैसे कमाने की मजदूरी मांगू
खेत खलियान के लिए
पानी की एक नहर मांगू
खुशाल जीवन जीने के लिये
आम आदमी का हक्क मांगू
ओर प्रदेशों की तरहा
हरा भरा रहने का हक्क मांगू
पानी की कमी का दर्द मेरा पुराना है
दर्द असहाय अषिम बन गया है मेरा
फिर भी सहे जा रहा हूं मैं
दर्द तो मेरा प्राचीन काल से है
पीछे मुड़कर देखे जा रहा हूं मैं
कितने अकाल देखे सहे है मैंने
राजस्थान रेगिस्तान है कहते
सबने बै वारिस छोड़ दिया है मुझे
मैं राजस्थान हूं, मैं मारवाड़ हूं
मैं मार्बल ग्रेनाइट पैदाईस का प्रदेश हूं
मैं हेन्ड क्रराफटिंग का खजाना हूं
मैं परिश्रम करने वालों का प्रदेश हूं
पानी की कमी की खलन
हरदम सताई जा रही है मुझे
पिड़ाएं मेरी पर्वत सी हो गई है
अब ये पिगलनी चाहिए
एक नहर हिमालय से सुखे प्यासे
राजस्थान के लिए निकलनी चाहिए..
एक नहर जरुर निकलनी चाहिए..
जय श्री विश्वकर्मा जी की
कवि/लेखक: दलीचंद जांगिड सातारा महाराष्ट्र
मो: 9421215933
Comments are closed.