राजनीति के महानायक भारत रत्न प्रणब दा का अध्यापक, वकील, पत्रकार से लेकर राष्ट्रपति तक का सफर

राजनीति का उगता और चमकता सूरत अस्त हो गया।

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जीजेडी न्यूज़ नई दिल्ली। 

राजनीति के महानायक प्रणब मुखर्जी की विदाई बहुत ही दर्द दे गई। हम उस महान व्यक्तित्व को आखरी सलाम पेश करते हैं। राजनीति का एक उगता और चमकता सूरत अस्त हो गया भारत की राजनीति का नायाब व्यक्तित्व, कर्मयोग का पर्याय, स्वच्छ राजनिति का प्रतीक, हर दिल अजीज, अच्छे अर्थशास्त्री, प्रखर पत्रकार, योग्य वकील, जीवन निर्माण के लिए बेहतर अध्यापक और सर्वोच्च पद पर पहंचे भारत के राष्ट्रपति बने वहीं भारत देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न जीते जी मिला

प्रणब दा तुझे युगों-युगों तक स्मरण किया जाता रहेगा

यह अपने आप में आने पीढियों के लिए अनुकरणीय व्यक्तित्व के रुप में जिनको युगों-युगांे तक स्मरण किया जाता रहेगा। वो एक नाम है एक नाम प्रणब कुमार मुखर्जी जिसको लोगों ने प्यार से प्रणब दा कहा तो किसी ने दादा, पोल्टू क्योंकि वो पश्चिम बंगाल के रहने वाले थे वहां सम्मान से बड़ों दादा कह देते हैं यह सम्मान लोगों ने इस व्यक्तत्व को भी दिया। इससे पहले कि हम आपके साथ आगे चर्चा करें हम जिस प्रकार से भगवान को आप नहीं कहते उसी प्रकार से हर दिल अजीज को हम प्रणव दा और दादा के संबोधन से स्मरण करेंगे। यह उनके चाहवानों के प्रेम की चाहत की पराकाष्ठा हैं इसलिए कोई उनको महबूब नेता कहता है तो अपने दिलों की धड़कन मानता है लेकिन वो धड़कन पांच तत्व में विलीन हो गई लेकिन अपने आदर्श अपने कायदे अपने जीवन में बनाये नियमों को छोड़ कर गए हैं।

 

महान कर्मयौद्धा प्रणब दा के जीवन की यात्रा

महान कर्मयौद्धा प्रणब दा के जीवन की यात्रा में बारे में जान लेते हैं प्रणव दा का जन्म 11 दिसंबर, 1935, मिराटी (मिराती) गाँव, बीरभूम ज़िला, पश्चिम बंगाल इनके पिता कामदा किंकर मुखर्जी और माता राजलक्ष्मी मुखर्जी थी। पत्नी शुभ्रा मुखर्जी के साथ गृहस्थ जीवन आरंभ किया और इनके दो पुत्र अभिजीत व इंद्रजीत जबकि एक पुत्री शर्मिष्ठा रही। इस महान व्यक्तित्व के राजनीति के सफरनामे के बारे में जान लेते हैं। प्रणव दा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में रहे इन्होंने भारत के 13वें राष्ट्रपति और पूर्व वित्त मंत्री के रुप में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाई। बतौर राष्ट्रपति 25 जुलाई, 2012 से 25 जुलाई, 2017 तक रहे। इन्होंने इतिहास और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर, एलएलबी विद्यालय कलकत्ता विश्वविद्यालय से पढाई की। हिन्दी, अंग्रेज़ी भाषा के अच्छे जानकार थे।

यूनिवर्सिटी ऑफ वॉल्वरहैम्पटन ने प्रणब मुखर्जी को डी.लिट की उपाधि से अलंकृत किया

साफ सूथरी राजनीति करने वाले इस महान व्यक्तित्व को पद्म विभूषण, भारत रत्न जैसे महान सम्मान से अलंकृत किया गया।

प्रणब मुखर्जी को कई प्रतिष्ठित और हाई प्रोफाइल मंत्रालय संभालें रक्षा मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, विदेश विषयक मंत्रालय, शिपिंग, राजस्व, नौवहन, यातायात, संचार, वाणिज्य और उद्योग, आर्थिक मामले जैसे लगभग सभी महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों में अपनी योग्यता से खास पहचान बनाई। प्रणब मुखर्जी पहले शिक्षक, एक वकील रहे, अपना करियर कोलकाता में डिप्टी अकाउंटेंट जनरल के कार्यालय में क्लर्क के रूप में शुरू किया। पत्रकार के रूप में अपने कैरियर को आगे बढ़ाया। उन्होंने जाने-माने बांग्ला प्रकाशन संस्थान देशेर डाक मातृभूमि की पुकार के लिए काम किया। वह बंगीय साहित्य परिषद के ट्रस्टी बने। बाद में निखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष बने। यूनिवर्सिटी ऑफ वॉल्वरहैम्पटन ने प्रणब मुखर्जी को डी.लिट की उपाधि से अलंकृत किया।

एक लोकप्रिय और सक्रिय कांग्रेसी नेता

प्रणब मुखर्जी के पिता कामदा मुखर्जी एक लोकप्रिय और सक्रिय कांग्रेसी नेता थे। वह वर्ष 1952 से 1964 तक बंगाल विधानसभा के सदस्य रहे थे। पिता का राजनीति से संबंध होने के कारण प्रणब मुखर्जी का राजनीति में आगमन सहज और स्वाभाविक था। प्रणब मुखर्जी के राजनीतिक जीवन की शुरुआत वर्ष 1969 में की, जब वह पहली बार राज्य सभा से चुनकर संसद में आए थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री, इंदिरा गांधी ने इनकी योग्यता से प्रभावित होकर मात्र 35 वर्ष की अवस्था में, 1969 में कांग्रेस पार्टी की ओर से राज्य सभा का सदस्य बना दिया। उसके बाद वे, 1975, 1981, 1993 और 1999 में राज्यसभा के लिए फिर से निर्वाचित हुए।

 

सरकार में कब कब और कहां पर रहे प्रणब दा

उसके बाद वे 3 साल के अंदर ही वर्ष 1973 में केंद्र सरकार में प्रणब मुखर्जी ने कैबिनेट मंत्री रहते हुए औद्योगिक विकास (इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट) मंत्रालय में उप-मंत्री का पदभार संभाला। प्रणब मुखर्जी सन 1974 में केंद्र सरकार में वित्त राज्य मंत्री बने। प्रणब वर्ष 1982 से 1984 तक कई कैबिनेट पदों के लिए चुने जाते रहे। इसके बाद वर्ष 1984 में वह पहली बार भारत के वित्त मंत्री बने। प्रणब मुखर्जी ने सन 1982-83 के लिए पहला बजट सदन में पेश किया। वह 7 बार कैबिनेट मंत्री रहे। जिसमें 2 बार वाणिज्य मंत्री, 2 बार विदेश मंत्री और एक बार रक्षा मंत्री जैसे महत्त्वपूर्ण कैबिनेट पद शामिल हैं। 1982-84 में जब वे भारत के वित्त मंत्री थे तो यूरोमनी मैगजीन ने उनका मूल्यांकन विश्व के सबसे अच्छे वित्त मंत्री के तौर पर किया था।

 


कांग्रेस से अलग पार्टी का गठन लेेकिन पीवी नरसिंह राव वापस ले आये

इन्दिरा गांधी की हत्या के पश्चात, राजीव गांधी सरकार की कैबिनेट में प्रणब मुखर्जी को शामिल नहीं किया गया। इस बीच प्रणब मुखर्जी ने 1986 में अपनी अलग राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस (राष्ट्रीय कांग्रेस समाजवादी दल) का गठन किया। लेकिन जल्द ही वर्ष 1989 में राजीव गांधी से विवाद का निपटारा होने के बाद प्रणब मुखर्जी ने अपनी पार्टी को राष्ट्रीय कांग्रेस मेंविलय कर दिया। पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव उन्हें पार्टी में दोबारा लेकर आये थे। प्रणब मुखर्जी कांग्रेस पार्टी के सर्वोच्च निकाय (CWC) कार्य समिति के 1978 में सदस्य बने। वर्ष 1985 तक प्रणब मुखर्जी पश्चिम बंगाल कांग्रेस समिति के अध्यक्ष भी रहे, लेकिन काम का बोझ बढ़ जाने के कारण उन्होंने इस पद से त्यागपत्र दे दिया था।

 

कांग्रेस प्रत्याशी की ओर से सबसे अधिक 1, 28,252 मतों से जीतने वाले सदस्य

प्रणब मुखर्जी पहली बार वह लोकसभा के लिए पश्चिम बंगाल के जंगीपुर निर्वाचन क्षेत्र से 13 मई 2004 को चुने गए थे और इसी क्षेत्र से दुबारा 2009 में भी लोकसभा के लिए चुने गए। इतने सालों तक, राज्यसभा के सदस्य के तौर पर राजनीति करने के बाद, प्रणब मुखर्जी पहली बार लोकसभा के उम्मीदवार के तौर पर खड़े हुए और, पश्चिम बंगाल में कांग्रेस प्रत्याशी की ओर से सबसे अधिक 1, 28,252 मतों से जीतने वाले सदस्य रहे।

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