नगर में गूंजे लीलाशाह-शहंशाह के जयकारे: स्वामी लीलाशाह जयंती पर सिंधी पंचायत ने निकाली संकीर्तन यात्रा

गुरूवार को सर्वप्रथम बहादुर पुरा स्थित सिंधी धर्मशाला में स्वामी लीलाशाह की छवि की झांकी फूलों से सजाकर दीप प्रज्जवलित कर पूजा-अर्चना की गई। पंडित मोहन लाल महाराज ने आरती कराई। तदोपरांत झांकी के साथ एक संकीर्तन यात्रा शुरू हुई, जिसमें सिंधी समाज के सैंकड़ों नर-नारी और बच्चे उत्साह के साथ शहंशाह-लीलाशाह और बोलेगा लीलाशाह उसका होगा बेड़ापार तथा हरे रामा-हरे कृष्णा की धुनि गाते हुए चल रहे थे।

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मथुरा: सिंधी समुदाय के मार्गदर्शक आध्यात्मिक गुरू स्वामी लीलाशाह महाराज की 143 वीं जयंती गुरूवार को उत्साहपूर्वक मनाई गई, इस मौके पर नगर में एक संकीर्तन यात्रा निकाली गई।

गुरूवार को सर्वप्रथम बहादुर पुरा स्थित सिंधी धर्मशाला में स्वामी लीलाशाह की छवि की झांकी फूलों से सजाकर दीप प्रज्जवलित कर पूजा-अर्चना की गई। पंडित मोहन लाल महाराज ने आरती कराई। तदोपरांत झांकी के साथ एक संकीर्तन यात्रा शुरू हुई, जिसमें सिंधी समाज के सैंकड़ों नर-नारी और बच्चे उत्साह के साथ शहंशाह-लीलाशाह और बोलेगा लीलाशाह उसका होगा बेड़ापार तथा हरे रामा-हरे कृष्णा की धुनि गाते हुए चल रहे थे।

Shouts of Leelashah-Shahenshah resounded in the city: Sindhi Panchayat took out Sankirtan Yatra on Swami Leelashah Jayantiगंगवानी परिवार, मुकुंद काम्प्लेक्स परिवार, चंदानी परिवार, नाथानी परिवार, मेठवानी परिवार, बुधरानी परिवार, आडवानी परिवार, सोनू अग्रवाल माया कलेक्शन परिवार आदि व्यक्तियों और संस्थाओं द्वारा रास्ते में जगह-जगह पर पुष्प वर्षा कर संकीर्तन यात्रा का स्वागत किया गया और प्रसाद भी बांटा जा रहा था।

जवाहर हाट, होली गेट, छत्ता बाजार, डोरी बाजार, चौक बाजार, भरतपुर गेट, कोतवाली रोड से होते हुए संकीर्तन यात्रा अपने उद्गमस्थल सिंधी धर्मशाला पहुंची, जहां सिंधी कलाकार चंद्रकांत लालवानी और धीरज ने गीत – भजन – कीर्तन द्वारा स्वामी लीलाशाह जी महाराज का गुणगान किया।

Shouts of Leelashah-Shahenshah resounded in the city: Sindhi Panchayat took out Sankirtan Yatra on Swami Leelashah Jayantiइस मौके पर पंचायत अध्यक्ष नारायणदास लखवानी ने स्वामी लीलाशाह जी महाराज के प्रेरक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि हर किसी को ईश्वर की उपासना व जनसेवा की ओर प्रेरित करने वाले मानवता के सच्चे हितेषी स्वामी लीलाशाह जी का जन्म सिंध प्रांत (तत्कालिन भारत का हिस्सा) के हैदराबाद जिले की टंडे बाग तहसील में महाराव चंडाई नामक गांव में सन् 1880 में ब्रहम क्षत्रिय कुल में हुआ था।

महामंत्री बसंत मंगलानी ने बताया कि स्वामी लीलाशाह वेद विद्या और सनातन धर्म के उच्च ज्ञाता थे, वह समाज में व्यप्त कुरीतियों तथा लुप्त होते धार्मिक संस्कारों से काफी दुखी थे। उन्होंने भारतीय संस्कृति के पुनरोत्थान तथा सोई हुई आध्यात्मिकता को जगाने के लिये बेहतर कार्य किये। स्वामी जी ने जहां समाज को आध्यात्मिक संदेश दिया वहीं समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने हेतु सबको जागृत किया और दहेज बिना सामुहिक विवाह समारोह के प्रेरक आयोजन शुरू कराया।

Shouts of Leelashah-Shahenshah resounded in the city: Sindhi Panchayat took out Sankirtan Yatra on Swami Leelashah Jayantiमीडिया प्रभारी किशोर इसरानी ने स्वामी लीलाशाह जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि लीलाशाह जी समाज के निर्बल वर्ग की पीड़ा से काफी आहत रहते थे, उन्होंने निर्धन विद्यार्थियों को पाठ्य सामिग्री एवं आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई। कई स्थानों पर धर्मशाला, गौशाला, पाठशाला व सत्संग भवन बनवाये, ऐसे महान संत ने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज सेवा में अर्पण करते हुए 4 नवम्बर सन् 1973 को अपना नश्वर शरीर त्यागा था।

Shouts of Leelashah-Shahenshah resounded in the city: Sindhi Panchayat took out Sankirtan Yatra on Swami Leelashah Jayantiइस मौके पर नारायण दास लखवानी, बसंत मंगलानी, तुलसीदास गंगवानी, जीवतराम चंदानी, गुरूमुखदास गंगवानी, किशोर इसरानी, चंदनलाल आडवानी, लख्मी खत्री, योगेश खत्री, गीता नाथानी, अनिता चावला, हेमा गंगवानी आदि सहित तमाम महिलाओं ने भागीदारी की।

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