घेवरचन्द आर्य पाली की कलम से: मातृ सेवा का आत्मिय आनन्द

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लेखक: घेवरचन्द आर्य पाली

दिनांक 21 जून अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस सुबह नौ बजे मैने प्रेक्षा को आवाज दी प्रेक्षा……वह दोडी हुई आई।
तेरी दादी ने अन्दर पेशाब कर दिया, कपडे परिवर्तन करने है, मैने कहा।
प्रेक्षा आज्ञा का पालन करते हुए धुले हुए कपडे लाकर देती है।
मै माँ को गोद मे लेकर बैठता हूं,
तो वह कपडे नही पहनने की जिद करती है। प्रेक्षा धीरे-धीरे उपर से घाघरा पहनाती है। जैसे मांँ छोटे बच्चे को पहनाती है।
तभी प्रेक्षा की मम्मी कहती है टीशर्ट भी दुसरा पहना दो।
प्रेक्षा अन्दर से टीशर्ट लेकर आती है, और पहना हुआ टी शर्ट बहुत सावधानी से उतार कर दूसरा पहनाती है, जिससे दादी को कोई कष्ट न हो।
उसके बाद मै खडे होकर मां को उठाता हूँ, प्रेक्षा मुत्र से सना माँ का घागरा उतारती है, और पुराना बिस्तर हटाकर साफ धुला विस्तर बिछाती है।
मै मांँ को उस पर सुलाता हूँ, वह खुश होकर हाथ जोड़कर हमे आशीष देती है।

बिस्तर पर सुलाने के बाद मैने माँ का हाथ पकडकर अंगुलिया देखी जिसके नाखुन बढ गये थे ।
मैने माँ से कहां नाखून काट दूं।
जबाब मिला क्यो?
मैने कहां बढ़ गये है।
मौन स्वीकृति के बाद मैने नीलकटर से दोनो हाथो के नाखुन काट दिए माँ खुश हुई।

सुबह 10 बजे का समय है मै माँ को छोटे बच्चे की तरह गोद मे लेकर भोजन करवा रहा हूँ। सामने ही सहसरी सुमित्रा हाथ मे कटोरी लिए बैठी है। जिसमे मांँ का प्रिय भोजन छाछ और दलीयां है।
मै एक-एक चम्मच भरकर धीरे धीरे माँ के मुह मे भोजन डाल रहा हूँ।
माँ धीरे-धीरे मुह खोलकर भोजन कर रही है, जैसे छोटा बच्चा करता है।
जब भोजन का कोर गले के निचे उतरता तो फिर मुह खोलती और मै चम्मच से मुह मे फिर भोजन डालता।
मां फिर मुह बंदकर भोजन करती जब कोर गले के निचे उतरता तो फिर मुह खोलती।
बिच-बिच मे कभी-कभी आंखे खोलकर देखती और बंद करती, कभी मुस्करा देती।
मां की यह हरकते किसी छोटे बच्चे जैसी लगती जो अभी-अभी भोजन करना सिख रहा हो।
भोजन करवाने के बाद मांँ को सीधे सुलाता हूँ। सुलाते ही वह गाढ निन्द्रावस्या मे सो जाती है। जैसे कोई निस्पृह योगी समाधिस्थ होकर ईश्वर भक्ति मे लीन होता है।
फिर मै भी मां के पास बैठकर छाछ और दलीयां पीता हुँ।
क्योंकि सुबह-शाम माँ को भोजन करवाने के बाद ही स्वयं नास्ता भोजन करना मेरा नियम है।

माँ को सुलाने के 10 मिनट बाद ही गांव से तेजाराम के साथ पुष्पा भाभीजी का आगमन होता है।
आते ही माँ के गाल पर हाथ फेर कर धासा …. धासा….. पुष्पा भाभी कहती है ।
गांढ निद्रा मे सोई हुई माँ का कोई जबाब नही देती।
पुन: हाथ मुह हिलाकर धासा…..।
योगनिद्रा मे लीन माँ का फिर भी कोई जबाब नही।
तब तक रसोई से देराणी सुमित्रा ने आकर भाभी के पांव पकड कर कहाँ, पगे लागू भाभी…..।
और प्रेक्षा को आदेश देते हुए कहां केरला से तेजाराम और तेरे ताईजी आये है, दो कप बढीयां चाय बना दे सुमित्रा ने कहां।
प्रेक्षा चाय बनाकर लाई और कप आगे करते हुए तेजाराम और भाभी से बोली चाय पीओ जी।
जब तक भाभी और तेजाराम बैठकर चाय पीते रहे, मैने कहां माँ की हालत अत्यन्त नाजुक है प्रेक्षा की मम्मी दिव्यांग है, इसलिए मांँ की सेवा मे दो स्वास्थ्य व्यक्तियो का रहना जरुरी है।
चर्चा को आगे बढाते हुए फिर कहां मेरी एक आंख मे मोतिया हो गया है। गाडी चलाते समय चक्कर आता है, डाक्टरो ने आपरेशन की सलाह दी है फिर भी आपरेशन नही करवाया, क्यो की मांँ की सेवा करने वाला कोई नही है।
भाभी और तेजाराम ने कहां हूं और चाय पीकर वापस रवाना हो गये।
12 बजे गाँव से भतीजा रमेश और विनणी बच्चों को लेकर आये पांच छ: घटे रूककर गये।
भाभीजी का आना तो अच्छा है, लेकिन आठ दस मिनट मे ही वापस जाना मर्यादित नही है। उनको भी रमेश और विनणी की तरह कम से कम एक दो घंटे बैठकर माँ के जागने का इन्तजार करना चाहिए।
जब कोई 103 वर्ष पार बृर्जुग भोजन करके गाढ निन्द्रावस्था मे हो तो आने वालो को चाहिए की वह उसके जागने का इन्तजार करे, जागने का इन्तजार किये बिना गाल पर हाथ फेरकर पुछेगा तो गाढ निन्द्रावस्था मे सोने वाले को कोई भान नही होगा की कौन आया और कौन गया।

सायंकाल का समय सहसरी सुमित्रा ने कहां मांँ को भोजन करवाने का समय हो गया है।
मैने कहाँ हां तो बारीक रोटी चुरकर उसमे छाछ मिलाकर लाऊ?
नही आम लाये है, आज मांँ को आम खिलाने है, सुमित्रा ने कहां।
मैने कहाँ इस अवस्था मे मांँ को आम खिलाना स्वास्थ्य के लिए हितकर है या अहितकर??
मुझे पता नही, काकीसा को फोन कर पुछती हूँ सुमित्रा ने कहां।
मैने काकीसा का फोन नम्बर लगाकर मोबाइल सुमित्रा को पकडा दिया।
हेलो… काकीसा‌… उधर से जबाब आया कौन?
मै आपकी बहूं सुमित्रा बोल रही हूँ‌।
कहो कैसे याद किया, मेरी जेठाणी तो ठीक है। काकीसा का जबाब आया।
एक दम ठीक है जी, आज आम लाये है, क्या धासा को आम खिला सकती हुं? सुमित्रा ने जबाब दिया।
उधर से जबाब आया हां जरुर खिलाओ काकीसा ने कहां।
ठीक है जी कहकर सुमित्रा ने फोन बंद कर दिया।

सुमित्रा अन्दर से आम लेकर आई और मुझे देते हुए कहां इसका रस निकाल दो काकीसा ने कहा की माँ को आम खिला सकते है।
मैने उसका रस निकालकर कटोरी सुमित्रा को पकडा दी और माँ को गोद मे लेकर बैठ गया।
सुमित्रा ने मांँ से तेज आवाज मे कहाँ धासा ….
माँ ने धीरे-धीरे आंखे खोली।
सुमित्रा ने कहां कुछ खाओगे धासा…?
मां ने मुहं खोला।
सुमित्रा एक-एक चम्मच मां के मुह मे डालकर आम का रस खिलाने लगी।
जब कोर गले के निचे उतरता तो माँ पुन मुह खोलती।
सुमित्रा फिर मुहं मे चम्मच से आम रस डालती।
पुरी कटोरी खाली करने के बाद उसमे पानी डालकर चम्मच से पिलाया गया।
उसके बाद मैने हाथ मे पानी लेकर माँ का मुह धोयाऔर तोलीये से साफ किया।
ओर माँ को पुनः बिस्तर पर सुला दिया, सोते ही माँ गाढ निन्द्रावस्या मे सो गई।

हम भी सो गये रात एक बजे पेशाब के लिए जागा पेशाब कर हाथ धोकर मां के पास गया। एक घंटा सिरपर हाथ रखकर गायत्री मंत्र और उसका कविता अनुवाद मांँ को सुनाया वह किसी भजन गायक के समान एक हाथ अपनी जांग पर रखकर अगुलीयां हिलाती , कमी दोनो हाथ जोडती। पिछले पांच दिन से माँ किसी निस्पृह योगी के समान ध्यान मग्न है। उसकी सेवा से मुझे जो आत्म संतोष मिलता उसका वर्णन करने मे असमर्थ हूँ।

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2 Comments
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