सोनीपत: स्ट्रोक के इलाज में गोल्डन पीरियड का रोल बेहद अहम, मैक्स हॉस्पिटल शालीमार बाग ने लोगों को किया जागरूक

मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल शालीमार बाग (नई दिल्ली) दशकों से न सिर्फ स्ट्रोक के मरीजों का इलाज कर रहा है बल्कि इस तरह के अवसरों से लोगों को स्ट्रोक के लक्षण और इमरजेंसी में बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में जागरूक कर रहा है। 

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सोनीपत: ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी) के हिसाब से भारत में स्ट्रोक के 68.6 प्रतिशत मामले, स्ट्रोक के कारण 70.9 प्रतिशत मौत के मामले और 77.7 प्रतिशत विकलांगता के मामले सामने आए हैं. स्ट्रोक भारत में मौत का दूसरा सबसे आम कारण है। भारत में हर साल लगभग 1,85,000 स्ट्रोक केस होते हैं, जिसमें हर 40 सेकंड में लगभग एक स्ट्रोक केस होता है और हर 4 मिनट में स्ट्रोक से एक मौत होती है।

मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल शालीमार बाग (नई दिल्ली) दशकों से न सिर्फ स्ट्रोक के मरीजों का इलाज कर रहा है बल्कि इस तरह के अवसरों से लोगों को स्ट्रोक के लक्षण और इमरजेंसी में बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में जागरूक कर रहा है।

मैक्स अस्पताल शालीमार बाग के डॉक्टरों ने इस बात पर जोर दिया कि स्ट्रोक के कम से कम 70-80% मामलों को रोका जा सकता है या वो इलाज योग्य होते हैं। ऐसे में इस परेशानी के प्रति जागरूकता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. तकनीक में हुई प्रगति से ये सुनिश्चित हुआ है कि इस स्थिति का न केवल इलाज किया जा सकता है, बल्कि ज्यादातर मामलों में कंडीशन रिवर्सेबल होती है।

मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल शालीमार बाग में न्यूरोलॉजी के यूनिट हेड एंड एसोसिएट डायरेक्टर डॉक्टर मनोज खनल ने इस पर कहा, ”स्ट्रोक मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति होती है जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता रहती है। स्ट्रोक के तुरंत बाद इलाज मिलने से ब्रेन में डैमेज को कम किया जा सकता है और इससे रिकवरी के चांस भी बढ़ जाते हैं। स्ट्रोक के मामले में ‘गोल्डन आवर’ बहुत अहम होता है जो स्ट्रोक के लक्षण शुरू होने के बाद लगभग 3 से 4.5 घंटे रहता है. इस पीरियड के दौरान, मरीज को तुरंत इलाज दिया जाना चाहिए, खासकर इस्केमिक स्ट्रोक के मामले में क्लॉट डिजॉल्व करने या क्लॉट को हटाने की प्रक्रियाओं जैसे इलाज से अच्छे रिजल्ट पाए जा सकते हैं। स्ट्रोक के मामले में तुरंत एक्शन बेहद अहम होता है, क्योंकि समय पर इलाज मिलना मस्तिष्क क्षति को काफी कम कर सकता है और इससे रिकवरी की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। स्ट्रोक का इलाज थ्रांबोलिटिक थेरेपी से भी किया जाता है जिसमें ब्लड फ्लो को ठीक करने के लिए स्ट्रोक के शुरुआती घंटों में क्लॉट डिजॉल्व करने वाली दवा दी जाती है। वहीं, मैकेनिकल थ्रोम्बोक्टॉमी, एंटीकोआगुलंट्स और एंटीप्लेटलेट दवाएं देकर और ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करके भी स्ट्रोक की स्थिति से निपटा जा सकता है। ”

इस विषय पर ज्यादा जानकारी के लिए डॉक्टर मनोज खनल की ओपीडी में भी परामर्श लिया जा सकता है। डॉक्टर मनोज सोनीपत के ट्यूलिप अस्पताल में महीने के दूसरे और चौथे गुरुवार को दोपहर 3 बजे से शाम 4 बजे तक ओपीडी परामर्श के लिए उपलब्ध हैं।

स्ट्रोक के मामलों में ब्रेन डैमेज को रोकने, ब्लड फ्लो रिस्टोर करने और बाकी स्थितियों को मैनेज करने के लिए आमतौर पर सर्जरी की जरूरत होती है. स्ट्रोक किस तरह का है, इसकी गंभीरता कितनी है और मरीज की अपनी स्थिति क्या है, इन तमाम बातों पर स्ट्रोक की सर्जरी निर्भर करती है।

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