घाटा मेहंदीपुर बालाजी : घाटा मेहंदीपुर बाला जी जाने से पहले यह जरूर जानें

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  • इत्र या कोई भी खुशबू वहां क्यों नहीं लगाते 
  • मेहंदीपुर में बालाजी के दरबार का प्रसाद घर पर क्यों नहीं लेकर आते 
  • बालाजी की छाती में छेद का क्या रहस्य है 
  • वहां भोग तीन जगह लगाने का क्या रहस्य है

पूरे ब्रह्मांड के अंदर दिव्य शक्तियों
की मान्यता हिंदू धर्म के अंदर है और भारत के जितने भी देवी देवता पित्र गण रिद्धि सिद्धि जंत्र मंत्र तंत्र करने वाले हैं। सभी राम भक्त हनुमान की पूजा करते हैं और हनुमान एक ऐसी शक्ति हैं जो शक्तिपुंज हैं जो भक्ति की एक अनोखी मिसाल हैं जो सेवा का पर्याय हैं जो समर्पण का खुद एक अध्याय हैं। ऐसा माना जाता है कि इस ब्रह्मांड के अंदर कोई भी किसी भी तरह का रोग विकार दुख तकलीफ़ व्याधि आदि है चाहे वह भूत प्रेत पिशाच जिस किसी भी वजह से है। उन सब से मुक्ति दिलाने वाले महाबली हनुमान हैं जो संकट काटते हैं और इन्हीं की बाल अवस्था का स्वरूप घाटा मेहंदीपुर में दो पहाड़ों के बीच स्थित बालाजी धाम है। यही वह पावन धरा है। यही वह पवित्र स्थल है, जहां पर है लोग जाते हैं। अपने समस्याओं के समाधान को पाते हैं। राजेश पहलवान पुरखासिया ,कृष्ण गुलिया और विनय वर्मा बाला जी  यात्रा के दौरान साथ रहे।

gjd newsआइए उस स्थान के बारे में, वहां की मान्यता मर्यादाओं के संदर्भ में जानते हैं और हमारे साथ में विद्वान उमाशंकर गॉड हमें इन सवालों के जवाब दे रहे हैं,तो आइए विस्तार से आप भी जानिए।
सवाल:-मेहंदीपुर बाला जी का नाम घाटे वाला क्यों पड़ा? 
जवाब:- मेहंदीपुर बाला जी घाटे वाले बालाजी इसलिए पड़ा क्योंकि यह दो घाटियों के मध्य स्थित है।  इस वजह से घाटे वाले बाबा कहा जाता है। ये भी कहा जाता है कि बाबा सबके घाटे पूरे करता है। लेकिन जो सच्चाई है वही है क्योंकि यह दोनों पहाडों के बीच के घाट में स्थित है।

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सवाल:- यहां लोगों की श्रद्धा का मुख्य कारण क्या है?
जवाब:-  लोगों की श्रद्धा का मुख्य कारण यहां सबसे पहले तो तंत्र मंत्र से मुक्ति मिलती है जो पूर्व जन्मों में किए हुए कर्मों की वजह से मनुष्य के साथ मिल जाती हैं , हिंदुओं के अनुसार यह तंत्र मंत्र भूत पिशाच की वजह से जो असाध्य बीमारियां शरीर में होती हैं उनको ठीक होते देखा गया है।
एक और बड़ी खास बात इसमें यह है कि जो निसंतान लोग हैं जिन्हें डॉक्टर ने मना कर दिया है कि आप माता-पिता नहीं बन सकते हैं उन लोगों की झोली भरने का काम दैवी शक्ति बालाजी महाराज  मेहंदीपुर वाले ने किया है। इसीलिए लोगों की आस्था का केंद्र मेहंदीपुर बालाजी बना है।
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सवाल:- हमारा विज्ञान यह कहता है कि भूत प्रेत नाम का कोई औचित्य नहीं है तो इसे हम किस प्रकार से स्वीकार करते हैं कि यहां भूत-प्रेत जंत्र- मंत्र- तंत्र का प्रयोग होता है?

जवाब:- सबसे पहले मैं आपको विज्ञान क्लियर करता हूं। जानिए विज्ञान क्या है? विज्ञान जो कहता है, वह क्या है? इसके बारे में मैं आपको छोटी सी बात बताता हूं जितना आधुनिक विज्ञान है।

 

 वह सारा कैलकुलेशन के आधार पर निर्धारित है, क्योंकि विज्ञान के अंदर फार्मूले होते हैं। वह एक कैलकुलेशन है। किसी भी कैलकुलेशन को समझाने के लिए उपयोग करने के लिए जो फार्मूला होता है उसको बोलते हैं हम थ्योरम जैसे पाइथागोरस थ्योरम होती थी जो हमें मैथ में हमारे अध्यापक पढ़ाते थे। इसके आधार पर यह निर्धारित किया जाता था कि यह सही है या गलत है। जब भी हम किसी उनको हल करना शुरू करते हैं तो उसमें लिखते हैं कि मान लीजिए हमने स्वीकार कर लिया X1 है और Y2 है उसके बाद उसमें हम फार्मूला लगाते हैं और अंत में हम लिखते हैं हेंस प्रूड। देखा जिस प्रश्न में हमने माना है, अजूम किया है। उसकी कैलकुलेशन पूर्ण कैसे हो सकती है। सिद्ध कैसे हो सकती है।

 

 दूसरी बात जितने ध्यान से हमने गुणा भाग करने  से मान लिया कि x=1 और y=2 अगर उतने ही प्रभाव से हम भगवान को इन शक्तियों को मानेंगे तो जैसे वहां पर हंस प्रूड के रिजल्ट आते हैं तो यहां पर भी हंस प्रूड के रिजल्ट आते हैं।
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सवाल:- जब हम बालाजी के मंदिर में प्रवेश करते हैं तो वहां कितने स्थान हैं जहां पूजा के लिए श्रद्धालु पहुंचते हैं उसके बारे में बताइए?
जवाब:- देखिए यहां सबसे पहले श्री बालाजी महाराज की पूजा होती है। बालाजी के साथ में यहां भैरव जी दो रूप में विराजमान है एक भैरव महाराज और एक कोतवाल कप्तान जी महाराज और तीसरी जो पूजा है यहां पर प्रेतराज सरकार जी की है प्रेतराज सरकार की पूजा करने के बाद वहां पर पूजा दीवान जी सरकार की की जाती है देवराज सरकार जो कि प्रेतराज सरकार के दीवान है और उसके बाद में जो बालाजी महाराज के महंत श्री गणेश पुरी जी महाराज जिन्हें समाधि वाले बाबा जी के नाम से जाना जाता है। जिनके पुण्य प्रताप से जिनके तप के कारण आज यह पुष्प खिला हुआ है फिर उनकी पूजा की जाती है।

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सवाल:- गणेश पुरी जी महाराज के पास में जाना क्यों जरूरी होता है जबकि भक्तों ने तो बालाजी को पूज लिया?
जवाब:- देखिए जैसे श्री रामचंद्र जी महाराज के अनन्य भक्त हनुमान जी महाराज हैं। हनुमान जी के अनन्य विनय को श्री रामचंद्र जी महाराज मना नहीं करते हैं, इसी प्रकार से हनुमान जी के परम भक्त श्री गणेश जी महाराज हुए। भक्त समाधि वाले बाबा के पास में जाकर अपनी फरियाद करते हैं। बालाजी महाराज के यहां पर फरियाद गलती से नहीं सुनी गई हो गणेश पुरी जी महाराज उस फरियाद को सुने और हनुमान जी महाराज के चरणों में निवेदन रखें।
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सवाल:- पूजा के कितने प्रकार हैं किस तरीके से प्रसाद देते हैं और किस प्रकार की वहां पर पूजा होती है?
जवाब:- वहां पर पूजा का कोई विधान नहीं है। वह एक कर्म स्थली है। वह अलग अलग तरीके से कर्म किए जाते हैं। पूजा नहीं की जाती। पूजा करने का एक अलग अर्थ होता है। वहां पर भक्तजन परेशानियों को दूर करने के लिए जाते हैं। उनके लिए कर्म किया जाता है।
सबसे पहले दरखास्त लगाई जाती है बालाजी महाराज हम आपकी शरण में आ गए हैं। हमारी हाजिरी स्वीकार करो उसके बाद एक अरदास बालाजी महाराज के चरणो में लगाई जाती है। उसमें कोई भी व्यक्ति अपने दो प्रश्न रख सकता है। उसके बाद अगर किसी व्यक्ति को कोई संकट है। भूत प्रेत से कोई परेशानी है या कोई उसकी मनोकामना है। उसके लिए अरदास लगाई जाती है। वहां पर अर्जी और एक अर्जी में एक ही काम बताया जाता है और अर्जी को स्वीकार करने की दरखास्त दोबारा लगाई जाती है। यह श्री बालाजी के दरबार का नियम है।
उसके बाद में जिस तरह के केस होते हैं जिस तरह का तंत्र मंत्र उन पर किया जाता है अलग-अलग भैरव जी प्रेतराज सरकार के भोग दिए जाते हैं।

 

gjd newsसवाल:- अच्छा यह अर्जी और दरखास्त क्या दोनों में अंतर है?
जवाब:- जी हां बिल्कुल दोनों में अंतर है। दरखास्त का मतलब है एक एप्लीकेशन जो बालाजी महाराज के चरणों में लगा दी गई। आप इसको अर्जी का छोटा स्वरूप कह सकते हो अर्जी का मतलब है अपने केस को एक तरह से रजिस्टर्ड करवाना दरखास्त का मतलब है कि जहां पर आप गए वहां पर आपकी हाजिरी लग गई आपकी बात खत्म हो गई अगर कोई हमें बड़ा काम करवाना है तो उसके लिए हमें अर्जी लगानी पड़ती है।
दरखास्त में एक बेसिक फर्क एक और भी है पहले सवा ₹2 की दरखास्त लगती थी फिर ₹5 की दरखास्त लगती थी अब ₹11 की दरखास्त लगती है और अर्जी पहले ₹81 की लगती थी फिर ₹181 की लगती थी अब ₹281 की लगती है दरखास्त के अंदर बालाजी के पांच छोटे-छोटे लड्डू और पांच पतासे दिये जाते हैं अर्जी के अंदर सवा किलो देसी घी के लड्डू बालाजी महाराज के लिए ढाई किलो या सवा 2 किलो के करीब उबले हुए  उड़द साबुत काले वह श्री भैरव जी महाराज के लिए और  साढे 4 किलो चावल श्री प्रेतराज सरकार के लिए यह अर्जी होती है।
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सवाल:- बालाजी महाराज की बाई छाती के अंदर छेद बताया जाता है क्या यह वास्तव में है ऐसा?
जवाब:- जी हां बाला जी महाराज ने सन 1985 में अपना चोला बदला था। चोले का मतलब उनका जो सोने चांदी का चोला चढ़ाया जाता है, वह चोला उन्हें नित चढ़ता है। यह मंदिर में स्थापित था उसके बाद सन् 1985 हालांकि मुझे सन पक्का याद नहीं है लेकिन इसके आसपास ही उसके बाद से यह चोला चढ़ना शुरू हो गया था। इतने नित्य चोले चढ़ने के बाद भी वहां से एक बूंद बूंद करके जो जल है वह रिश्ता रहता है इतने चोले चढ़ने के बाद भी वह बंद नहीं हुआ।
बताते हैं कि एक बार किसी राजा ने वहां उसकी खुदाई भी करके देखनी चाहिए थी। उस मूर्ति के नीचे काफी हद तक खोदते चले गए थे।  यह मूर्ति जिस पहाड़ में निकली हुई है उसका कोई अंत ही नजर नहीं आया तो फिर उन्होंने उसको दोबारा से बंद कर दिया। बालाजी की मूर्ति के पीछे पहाड़ है, उस स्थान पर कोई सरोवर नहीं है कोई झील नहीं है। कोई तालाब नहीं है कुछ नहीं है और वहां पर जल कैसे आता है यह तो मालिक ही जाने।

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सवाल:- अच्छा यह बताइए बालाजी को लड्डू भैरव जी को उड़द और प्रेतराज को चावल चढ़ाने का महत्व क्या है इसका अर्थ क्या है?
जवाब:- अलग अलग चीज होती है। जब हमारे हिंदू समाज के अंदर जब पूजा की जाती है तो इस तरह उसी के अनुसार उनके भोजन की व्याख्या हमारे शास्त्रों में की हुई थी। बालाजी महाराज के लड्डू प्रिय हैं, तो लड्डू चढ़ाए जाते हैं, बालाजी महाराज और गणेश जी महाराज के दोनों के लड्डू प्रिय हैं। उसके बाद भैरव जी महाराज को उड़द की पूजा ही विशेष है कभी से ही आप कहीं भी चले जाएं वहां पर इसी तरह की होती है। चाहे आप हिंदुस्तान में कहीं भी जाएं वहां पर उड़द  से बने हुए पदार्थ जैसे इमरती हो गई या गुलदाना हो गया यह भैरव जी महाराज को अर्पित किए जाते हैं। रह गए हमारे प्रेतराज सरकार हमारे शास्त्रों में पहले से ही लिखा हुआ है कि जब भी हम कोई मृतक कर्म करते हैं, उसके अंदर चावल के आटे का प्रयोग ही किया जाता है।

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सवाल:- हां तो यहां पर किसी भी प्रकार के खानपान का कोई परहेज करना पड़ता है?
जवाब:- जी बिल्कुल करना पड़ता है, जो श्रद्धालु वहां पर जाते हैं उनके लिए विशेष तौर पर है कि 40 दिन तक प्याज और लहसुन बिल्कुल बंद होता है।  शराब मीट मांस का प्रयोग कभी नहीं होता और 41 दिन के बाद में शनिवार मंगलवार और अमावस पूर्णमासी यह दिन ऐसे होते हैं जिन पर प्याज लहसुन का प्रयोग बंद किया जाता है।
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सवाल:-  ऐसा क्या कारण है कि वहां पर दो स्वरूप में प्रसाद चढ़ता है जिसमें दरखास्त का अलग है अर्जी का अलग है ऐसा क्यों?
जवाब:- पहली बात तो यह प्रसाद नहीं है, यह होता है भोग। उसमें से आप कुछ भी ग्रहण नहीं करते हो, उसमें से आपको अंश मात्र ही मिलता है जो दरखास लगाता है, वही वह उस अंश को ग्रहण नहीं कर सकता है। चाहे वह पति पत्नी ही क्यों ना हो, चाहे वह संतान ही क्यों ना हो।

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सवाल:- जो प्रसाद हम खाते हैं, लेकिन ऐसा क्या कारण है कि वहां पर बालाजी मंदिर से अपने घर श्रद्धालु प्रसाद को लेकर नहीं आ सकते?
जवाब:- जी हां कारण विशेष यह है कि पहली बात बालाजी महाराज पर उस स्थान विशेष पर कोई प्रसाद चढ़ता ही नहीं है। वहां केवल बालाजी महाराज पर भोग दिया जाता है। और मैंने जैसे आपको पहले ही बताया कि वह कोई पूजा का स्थान नहीं है, दर्शन कर सकते हैं। आप कर्म करते हैं तो कर्म का स्थान पूजा के लिए दुनिया भर के मंदिर हैं। आप वहां जाते हैं । देवी देवताओं की पूजा की जाती है। लेकिन बालाजी महाराज पर पूजा कारणों की करी जाती है और उन कारणों का समाधान करने के लिए कर्म किए जाते हैं तो प्रसाद बालाजी महाराज पर चढ़ता ही नहीं है वहां सिर्फ एक प्रसाद चढ़ता है, वह सवामणी कहलाता है। जिसका काम पूरा होने पर श्रद्धालु अपनी श्रद्धा से सवामणी लगाता है और जो कार्य पूरा होने के बाद सवामणी लगाई जाती है। वह सवामणी जो आपके साथ में गए हुए हैं उनके लिए ही वितरित की जाती है। बचा हुआ प्रसाद बालाजी मंदिर में महाराज जी की स्वीकृति लेने के बाद में उस स्थान से बाहर भेजा जाता था। इसकी व्यवस्था इसलिये की गई है जो 5 किलोमीटर का एरिया है वह प्रतिबंधित एरिया है।
प्रतिबंधित एरिया में भूत पिशाच रहते हैं तो ऐसा माना जाता है। उस प्रसाद के साथ में भूत पिशाच साथ में व्यक्ति के साथ चले जाते हैं। जो उन्हें बाद में परेशान करते हैं। इसलिए वहां पर कोई भी खाने पीने का सामान नहीं लाया जाता है।

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सवाल:- यहां पर जो हम बालाजी का मंदिर देखते हैं उसके साथ में श्री राम का मंदिर है यह शुरुआत से ही है या इसकी कोई व्यवस्था बाद में की गई है?
जवाब:- यह बाद में बना है संयोग से नहीं है श्री रामचंद्र जी और श्री बालाजी महाराज के मंदिर और मंदिरों में जो उनकी स्थापना है वह इस तरीके से की गई है कि बालाजी महाराज की दृष्टि सदैव श्री राम के चरणों तक पहुंचे बिल्कुल आमने-सामने हैं।
श्री बालाजी महाराज की मूर्ति पीपल के वृक्ष के नीचे होते थी जहां प्रेतराज महाराज और बालाजी के बीच में एक पीपल का वृक्ष होता था और श्री रामचंद्र की मूर्ति भी पीपल के वृक्ष के नीचे थी मैंने वह दोनों पीपल देखे हुए हैं।

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सवाल:- वहां पर ऐसा सुनने में आता है बालाजी मंदिर है वह 2 जिलों के बीच में बटा हुआ है क्या यह बात सही है?
जवाब:- जी हां यह जो बालाजी महाराज का दाया हिस्सा जो है वह दौसा जिले में और जो बाया हिस्सा है वह करौली जिले में है मंदिर भी और बालाजी महाराज का स्वरुप भी स्थापित है।

 

सवाल:- फिर तो यहां पर कई बार हास्यास्पद स्थिति पैदा हो जाती होगी?
जवाब:- जी हां जैसे करोना कॉल में ऐसा हुआ था कि दौसा से उन्हें परमिशन मिल गई थी मंदिर खोलने के लिए लेकिन किरौली के डीएम ने आकर फिर से उसे बंद करा दिया तो वहां पर जो सामाजिक कार्य हैं और जो वहां के सौंदर्य के जो कार्य हैं इसी वजह से प्रभावित होते हैं। क्योंकि उन्हें दोनों जिलों के डीएम से स्वीकृति लेनी होती है।

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सवाल:- इसके सामने जो मंदिर है जो बालाजी का और उसके सामने कुछ पहाड़ियां हैं तीन पहाड़ हैं उनके बारे में कुछ जानकारी है आपके पास में?
जवाब:- तीन पहाड़ शक्तिस्थल हैं। श्री बालाजी महाराज के मंदिर के सामने है। पहले पहाड़ के ऊपर सबसे पहले शिव जी का मंदिर है। जहां पर शिव परिवार की पूजा करके वहां पर अपने पितरों की शक्ति के लिए प्रार्थना की जाती है।

 

दूसरे पहाड़ के ऊपर प्राचीन समय से मां महाकाली का एक मंदिर है, वहां पर भूत प्रेत पिशाच आदि के बंधन काटे जाते हैं।
 तीन पहाड़ है वहां पर पंचमुखी हनुमान जी उनके साथ में श्री भैरव जी मां मनसा मां काली और महाकाल श्मशान जी भैरव महाराज इन सभी के वहां पर स्थान हैं। अब उसके बाद में वहां पर सिद्ध गुरु गोरखनाथ जी महाराज का भी स्थान बना दिया गया है। और उसके बाद में कोतवाल कप्तान जी का भी स्थान बनाया गया है।

 

जब वहां से वापस नीचे उतरते हैं तो मार्ग में प्राचीन घाटे वाले बाबा का मंदिर श्री हनुमान जी का मंदिर है। यह कहते हैं कि जितनी भी आप दर्शन कर लो जब आप वहां पर जाओगे तो शरीर में एक नई स्फूर्ति आ जाती है आनंद की अनुभूति होती है।

 

सवाल:- जो बालाजी मंदिर है पौराणिक है या यह भी अभी बनाया गया है?
जवाब:- यह पौराणिक मंदिर है और यहां पर पौराणिक मंदिर का जो स्थान है श्री बालाजी महाराज का ही है।

 

सवाल:- जो पहाड़ों के ऊपर जो मंदिर बने गए हैं जो स्थान बने हैं वह कब बनाए गए हैं पुराने हैं या अभी बने हैं?
जवाब:- नहीं यह सभी स्थान नए बनाए गए हैं वहां केवल श्री भैरव जी महाराज का स्थान था जिसमें के आसपास के ग्रामीण उनकी पूजा करने के लिए जाते थे।

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सवाल:- शुक्रिया उमा शंकर गौड़ जी आपने बहुत बेहतरीन जानकारी हमें दी है आप अंतिम में कोई ऐसी विशेष बात बताना चाहते हैं संक्षिप्त में हमारे पाठकों को बताएं?
जवाब:- यह एक विशिष्ट स्थान है और उस स्थान के ऊपर मनोरंजन के लिए कभी नहीं जाना चाहिए। वहां पर काम में प्रयोग किए जाते हैं। वहां पर जा कर के वहां की जो नीति और नियम है उनका पालन जरूर करना चाहिए। अगर वहां पर उनका अनुपालन नहीं किया जाता तो व्यक्ति परेशानी में आ सकता है। सावधानी जाने वाले व्यक्तियों को जरूर चाहिए।

 

सवाल:- ऐसा सुनने में आता है कि वहां पर किसी प्रकार की जो खुशबू और लगा कर के ना जाए इसका क्या कारण क्या है?
जवाब:- क्योंकि हिंदू धर्म के अंदर ऐसा माना जाता है कि खुशबू या किसी प्रकार का सौंदर्य प्रसाधन यह नकारात्मक चीजों को आकर्षित करते हैं भूत प्रेत पिशाच इत्यादि को अपनी ओर आकर्षित करते हैं इसके तहत जो बालाजी महाराज के वहां पर नियम होते थे जो संकटग्रस्त व्यक्ति होता था। उसके खानपान का बड़ा विशेष होता था कि वह छोंक लगाई हुई सब्जी नहीं खा सकता था। केवल पानी में हल्दी नमक मिर्च मिलाकर के उसको खा सकता था। और सूखी रोटी खा सकता था। अब तो हालात बदल गए हैं। होटल, धर्मशाला  की व्यवस्था हो चुकी है तो लोग खा लेते हैं जिन्हें ज्ञान नहीं है। वहां पर हर वह चीज प्रतिबंधित है, जो भूत प्रेत इत्यादि को अपनी ओर आकर्षित करती है या भूत प्रेत से उनकी ताकत बढ़ती हो। 

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40 Comments
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