राम भगत शर्मा की कलम से: प्रभु भक्त के पास प्रेम, करुणा और क्षमा तथा संन्तोष रुपी अमोघ रामबाण
शक्ति की अधिष्ठात्री माता पार्वती जी ने प्रेम और भक्ति के रास्ते पर चल कर ही भगवान महादेव को अपनी भक्ति के माध्यम से हासिल करने का संकल्प लिया था और वर्षों की घोर तपस्या और कठोर साधना तथा जीवन में असीम प्रेम अपनी पराकाष्ठा पर पहुंचने के कारण ही माता पार्वती ने महादेव को प्राप्त कर लिया था।
राम भगत शर्मा (चंडीगढ़) की कलम से
जीवन में जिस भी प्रभु भक्त के पास प्रेम, करुणा और क्षमा तथा संन्तोष रुपी अमोघ रामबाण हैं तो इनको आत्मसात करते हुए ही परमात्मा का एक अनन्य भक्त उस सर्वेश्वर को पाने के लिए लालायित हो उठता है और प्रभु भक्ति का अमृतपान करने के साथ ही उसमें क्षमा याचना की भावना को आत्मसात करने से उसका विषाद भी दूर हो जाता है।
शक्ति की अधिष्ठात्री माता पार्वती जी ने प्रेम और भक्ति के रास्ते पर चल कर ही भगवान महादेव को अपनी भक्ति के माध्यम से हासिल करने का संकल्प लिया था और वर्षों की घोर तपस्या और कठोर साधना तथा जीवन में असीम प्रेम अपनी पराकाष्ठा पर पहुंचने के कारण ही माता पार्वती ने महादेव को प्राप्त कर लिया था।
मेरा मानना है कि दक्ष की पुत्री रेवती से चन्द्रमा द्वारा प्रेम न किए जाने के कारण ही चन्द्रमा को प्रजापति दक्ष के कोप का भाजन बनना पड़ा और दक्ष के श्राप के कारण ही चन्द्रमा को क्षय होने का श्राप झेलना पड़ा लेकिन महादेव ने उस चन्द्रमा की गरिमा को बनाए रखने के लिए ही अपने शीश पर धारण कर लिया और प्रेम के वशीभूत होकर ही सती ने महादेव से कहा कि मेरे पिता दक्ष प्रजापति मेरे ऊपर घर से निकले पर प्रतिबंध तो लगा सकते हैं लेकिन मुझे प्रेम करने से कदापि नहीं रोक सकते है।
इसी लिए कहा गया है कि प्रेम कभी भी खरीदा नहीं जा सकता है और प्रेम तो दो आत्माओं का मिलन है और जो व्यक्ति किसी से प्रेम करता है तो उसे बार बार उसी का चिन्तन होता है और बार बार चिन्तन करने और प्रभु भक्ति करने से ही परमात्मा को हासिल किया जा सकता है। प्रेम तथा भक्ति के माध्यम से ही शिव को पाया जा सकता है जो सत्य भी है और शाश्वत भी और जिस समय प्रभू मिलन की अनुभूति होती है उस आनंद को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता है।
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