कवि दलीचंद जांगिड़ की कलम से: जिज्ञासा से विद्या प्राप्ति के साधन
कवि दलीचंद जांगिड़
किसी भी क्षैत्र में आपको सफलताओं को हासिल करने के लिए जिज्ञासा का होना अति आवश्यक हो जाता है वरना आधी अधूरी जानकारी के साथ ही समाधान मानना पड़ेगा। जब किसी विशेष विषय को लेकर मन में (ह्रदय के तल से) तीव्र गति से जिज्ञासा जन्म लेकर “चाहना” जोर पकड़ती है तब उस विषय पर विशेष ध्यान देकर अभ्यास की तल-तलाट से ही श्रैष्टता हासिल की जा सकती है।
तब मन की भी यही चाहना होती है जो आप चाहते हो तब विचारों की “श्रृंखला एक मत होकर” उस विषय पर पी. एस. डी. की जा सकती है, यह सत्य से निगडीत ही है। संसार में जितने भी महान हस्तीयां (महा पुरुष) हुई है वे सभी किसी ना किसी उद्देश्य को लेकर चले होंगे, तब उनकी उसी विषय पर आस्था (तीव्र जिज्ञासा) रही होगी। बस यह विजय प्राप्त करने के मार्ग है और इसी जिज्ञासा से विद्या की प्राप्ति होती है, यह सत्य वचन है।
यह ज्ञान गुरु सानिध्य में रहकर सिखा जा सकता है और शास्त्रों के गहन अध्ययन से विद्या (ज्ञान प्राप्ति) ग्रहण कर सकते है। ऐकाग्रहता के साथ मन में तीव्र जिज्ञासा के साथ ईश्वर साक्षात्कार (ईश्वर प्राप्ति) में सफलता साथ-साथ सभी कार्यों में विजय प्राप्त कर सकते है, यही तो जिज्ञासा से विद्या प्राप्ति के साधन और ईश्वर साक्षात्कार के साधन माने जाते है।
सत्य के पालन से और आध्यात्म के आचरण से जीवन प्रगत होता है…
गुरु अपने प्रवचन में कहते कि सत्य का पालन करने से जीवन में निर्भीकता आती है, समाज में मनुष्य का विश्वास बनता है, मन शान्त व प्रसन्न रहता है। ईश्वर साक्षात्कार में सफलता के साथ-साथ सभी उत्तम कार्यों में विजय प्राप्त होती है।
इसके विपरीत असत्य को आचरण में लाने से मानसिक चिंतायें बढ़ती हैं, समाज में प्रतिष्ठा घटती है, आत्मग्लानि होती है और हमारे पाप कर्म बढ़ते हैं। ईश्वर इन पाप कर्मों को कभी भी क्षमा नहीं करता है। अतः मनुष्य को हमेशा सत्य का ही पालन करना चाहिए।
कारण सत्य व आध्यात्म ही सफलताओं की कुंजी मानी जाती है।
जय श्री विश्वकर्मा जी की सा
लेखक कवि दलीचंद जांगिड़ सातारा महाराष्ट्र
