कवि दलीचंद जांगिड़ की कलम से: बुढापो आवी गयो भाय्या….
एक दु:खी बाप के ह्रदय से निकले दु:ख भरे उद्दगार….
हाय बुढापा थनै कोई लेवे तो बेच दूं ,
मोल लाख रो करु नहीं भाईड़ा,
कोड़ी रे भाव बेच दूं ,
बुढापो रो भाव सस्तो कर दियो हूं,
जद्द मिले म्हने ग्राहक तो उभो उभो बेच दूं ,
पेला मारी बातों एक आवाज लगावतो,
तो दस दस जणा साम्भलता,
अबे दस आवज देऊ तोई कोई सुणे नहीं म्हारी बात,
पेला घर में म्हारी धाक सू सब जणा
उठ खड़ा होइने उबा उबा धूजता,
अबै म्हाने जीवन री निराशा पल्ले पड़ गई,
हाय बुढापा थनै कोई लेवे तो बेच दूं ,
पेला म्हारी बातों गांव गल्ली रा लोग सुणता,
अबे म्हारे घर रा लोग म्हारी बातों ने,
हवा रे साथे छोड़ देवे है,
देखो मिनकों ओ केड़ो कलजूग आवी गियो है,
कोई लेवे म्हारो बुढापो तो बेच दूं ,
पेला पाणी री पणियारियों भरीए मटके देख बुढों ने,
उभी रेईने दीवार सामै जोवती,
अबै बुढों री कद्दर कूण करे,
अब दे धक्को ने बुढों ने पाड़ देवे,
अबै बुढीयों री कद्दर नहीं करे म्हारा भाईड़ा रे,
पेला बुढों री मान मर्यादा सगळा पाळता,
अबै औलाद म्हारी म्हने केवै है,
—–बेटो केवै बाप सू….
थे मारे वास्ते कोई नही करियो है….?
—–जद बाप बोले”” “”
बेटा थने भणियो पढियो हुशीयार कीदो हूं ,
सगाई कर ब्याव थारौ धूमधाम सू करियो हूं ,
संसार री रीतों सगळी निभाई हूं ,
——-फिर भी——
बैटो केवै म्हाने इण में कोई थे नवो करियो,
दुनिया करे वो काम थै करियो है,
—अब बाप केवै—
साम्भळो ओ दुनिया वाळो,
दुनिया री रीत मैं सगळी निभाई हूं ,
ओ “कोजश” मारे पल्ले पड़ीयो है,
इण कारण म्हने बुढापो बेसणो है,
कोई लेता वे तो बुढापो म्हारो बेच दूं ,
अबै बुढापा रो मानपान सगळा भूली गया है,
अब तो म्हाने हार माननी पड़ गई,
इण आवता कलजूग रे माएं ,
कोई लेवता वे तो बुढापो मारे बेसणो ,
लाख नहीं करु मोल,
कोड़ी रा भाव बेच दूं ,
कलजूग में जीवणो गणो दोरो रे भाय्या,
हाय बुढापा थने कोई लेवे तो बेच दूं…..?
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जय श्री विश्वकर्मा जी री सा
