कवि दलीचंद जांगिड़ की कलम से: माफ कर दो या माफी मांग लो — यह दैवीय गुण हि है….
कवि दलीचंद जांगिड़
मनुष्य जीवन में उपयुक्त एक अनमोल सूत्र
माफ कर दो या या माफी मांग लो जीवन की बहुत समस्याएं स्वतः ही हल हो जायेंगी। किसी को उसकी गलती के लिए माफ कर देना भी एक साहसिक एवं दैवीय गुण है। हमारे जीवन की बहुत सारी समस्याएं वहाँ से उत्पन्न होती हैं, जब हमारे भीतर यह अहम का भाव आ जाता है कि मैं उसे माफ क्यों करूँ..?
हमारी यही अहमता फिर प्रतिद्वंदिता और प्रतिशोध का कारण बनकर रह जाती है। पारिवारिक जीवन में, मैत्री जीवन में या सामाजिक जीवन में संबंधों को मजबूत और मधुर बनाने हेतु किसी भी व्यक्ति के अंदर इन दोनों गुणों में से एक गुण की प्रमुखता अवश्य होनी ही चाहिए।
महाभारत की नींव ही इस सूत्र के आधार पर पड़ी कि किसी के द्वारा माफ नहीं किया गया तो किसी के द्वारा माफी नहीं मांगी गई। हमारा जीवन एक नयें महाभारत से बचकर आनंद में व्यतीत हो इसके लिए आज बस एक ही सूत्र काफी है और वो है, माफ कर दो अथवा माफी माँग लो।
“आध्यात्मिक प्रकोष्ठ”
अध्यक्ष
पं. सत्यपाल जी वत्स.
