कर्मयोगी कृष्ण: आधुनिक समाज के लिए प्रेरणा
भगवान श्रीकृष्ण।
भगवान श्रीकृष्ण केवल धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि कर्म, नीति और जीवन के व्यवहारिक दर्शन के प्रतीक हैं। वे एक ऐसे युगपुरुष हैं जिनकी शिक्षाएँ आज भी जीवन की हर परिस्थिति में मार्गदर्शन देती हैं। महाभारत के युद्धक्षेत्र में उन्होंने जो गीता का उपदेश दिया, वह केवल अर्जुन के लिए नहीं, बल्कि पूरे मानव समाज के लिए एक अनंत सत्य है। कृष्ण का जीवन कर्मयोग का जीवंत उदाहरण है — उन्होंने हमें सिखाया कि सफलता या असफलता से परे रहकर, अपने कर्तव्यों का पालन करना ही सच्ची साधना है। आज जब समाज स्वार्थ, प्रतिस्पर्धा और मानसिक तनाव में उलझा है, तब श्रीकृष्ण का कर्मयोग दर्शन एक उजाला बनकर सामने आता है। उन्होंने बताया कि “कर्म किए जा, फल की चिंता मत कर” — यह केवल वाक्य नहीं, बल्कि जीवन जीने की पूर्ण पद्धति है।
कर्म में निष्ठा, फल में अनासक्ति
श्रीकृष्ण का प्रमुख संदेश है — “कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।” इसका अर्थ है कि मनुष्य को केवल अपने कर्म पर अधिकार है, उसके परिणाम पर नहीं। आज के युग में जब लोग परिणाम पर अधिक और कर्तव्य पर कम ध्यान देते हैं, यह शिक्षा अत्यंत प्रासंगिक है। यदि हर व्यक्ति अपने दायित्व को निष्ठा और ईमानदारी से निभाए, तो समाज में न केवल व्यवस्था बल्कि मानसिक शांति भी स्थापित हो सकती है।
नीति, बुद्धि और व्यवहार का संगम
कृष्ण केवल आध्यात्मिक गुरु नहीं, बल्कि एक कुशल राजनीतिज्ञ, मित्र और मार्गदर्शक भी थे। उन्होंने दिखाया कि धर्म का अर्थ केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि न्याय और सत्य के लिए विवेकपूर्ण निर्णय लेना है। जब उन्होंने अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित किया, तो वह हिंसा नहीं बल्कि अधर्म के विरुद्ध कर्म का प्रतीक था। आधुनिक समाज में भी जब नैतिक दुविधाएँ सामने आती हैं, तब कृष्ण की नीति हमें संतुलन और सत्य का मार्ग दिखाती है।
कर्मयोग से आत्मबल की प्राप्ति
श्रीकृष्ण ने आत्मबल और आत्मनियंत्रण को जीवन की सबसे बड़ी शक्ति बताया। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति अपने मन पर विजय पा लेता है, वही सच्चा विजेता है। आज के युग में जब लोग अवसाद, असफलता और भय से जूझ रहे हैं, कर्मयोग की यही शिक्षा उन्हें स्थिरता और आत्मविश्वास प्रदान कर सकती है।
निष्कर्ष: कृष्ण दर्शन – आधुनिक जीवन का पथप्रदर्शक
श्रीकृष्ण का कर्मयोग केवल धार्मिक आस्था का नहीं, बल्कि जीवन प्रबंधन का सूत्र है। उन्होंने दिखाया कि जीवन में हर कर्म, हर निर्णय, और हर संघर्ष को संतुलन, विवेक और निष्ठा से निभाना ही धर्म है। यदि आधुनिक समाज श्रीकृष्ण के कर्मयोग को आत्मसात कर ले, तो न केवल व्यक्तिगत जीवन में शांति बल्कि सामाजिक स्तर पर भी समरसता स्थापित की जा सकती है।
कृष्ण के शब्दों में – “जो कर्म में विश्राम और विश्राम में कर्म को देखता है, वही सच्चा योगी है।” यही दृष्टि आज के समाज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
