टाटा ट्रस्ट्स में बड़ा बदलाव: मेहली मिस्त्री बाहर, नोएल टाटा का पलड़ा भारी
टाटा ट्रस्ट्स में बड़ा बदलाव।
नई दिल्ली। टाटा समूह के सबसे प्रभावशाली ट्रस्ट्स में एक बड़ा फेरबदल हुआ है। रतन टाटा के करीबी माने जाने वाले मेहली मिस्त्री को सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट और सर रतन टाटा ट्रस्ट के बोर्ड से बाहर कर दिया गया है। यह फैसला ट्रस्टियों के बीच मतभेद और शक्ति संतुलन की नई दिशा को दर्शाता है।
री-अपॉइंटमेंट पर सहमति नहीं बनी
छह ट्रस्टियों में से तीन ने मिस्त्री के री-अपॉइंटमेंट के खिलाफ वोट डाला। डेरियस खंबाटा, प्रमित झावेरी और जहांगीर एचसी जहांगीर ने समर्थन में मतदान किया, जबकि नोएल टाटा सहित तीन ट्रस्टियों ने विरोध किया।
टाटा ट्रस्ट्स के नियमों के अनुसार किसी भी निर्णय के लिए सर्वसम्मति जरूरी होती है। इस कारण यह टाई नहीं बल्कि “नो कंसेंसस” माना गया, जिससे मिस्त्री को पद से हटना पड़ा।
टाटा ट्रस्ट्स का प्रभाव और नियंत्रण
टाटा ट्रस्ट्स, टाटा समूह की मूल कंपनी टाटा संस के 66% शेयरों पर नियंत्रण रखता है।
मिस्त्री 2022 से दोनों प्रमुख ट्रस्ट्स — सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट (SDTT) और सर रतन टाटा ट्रस्ट (SRTT) — के ट्रस्टी थे। ये ट्रस्ट्स टाटा संस में 51% हिस्सेदारी रखते हैं और बोर्ड में एक-तिहाई सदस्यों को नामित करने का अधिकार रखते हैं।
नोएल टाटा बनाम मिस्त्री गुट
रतन टाटा के निधन के बाद उनके सौतेले भाई नोएल टाटा को अक्टूबर 2024 में ट्रस्ट का चेयरमैन बनाया गया।
इस नियुक्ति ने ही ट्रस्ट के भीतर विभाजन की शुरुआत की।
एक गुट नोएल के समर्थन में था, जबकि दूसरा गुट मिस्त्री के साथ खड़ा था। मिस्त्री का संबंध शापूरजी पलॉन्जी ग्रुप से है, जिसकी टाटा संस में 18.37% हिस्सेदारी है।
कानूनी विवाद की आशंका
मिस्त्री ने हाल ही में वेणु श्रीनिवासन की बहाली को शर्त के साथ मंजूरी दी थी, जिससे विवाद और गहरा गया।
अब चर्चा है कि वे इस फैसले को अदालत में चुनौती दे सकते हैं। ट्रस्ट के कुछ सदस्यों ने कहा है कि शर्तीय मंजूरी कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं है।
असर और आगे की दिशा
मिस्त्री का बाहर होना नोएल टाटा कैंप को मजबूती देगा और टाटा संस के बोर्ड में नई नियुक्तियों का रास्ता खोलेगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि इससे टाटा ट्रस्ट्स की एकता पर प्रश्नचिह्न लग गया है और शापूरजी पलॉन्जी समूह के साथ पुराना विवाद फिर से उभर सकता है।
