November 8, 2025

विवेकपूर्ण जीवन से ही ईश्वर रचना का सही आनंद: सतगुरु माता सुदीक्षा जी

True enjoyment of God's creation is possible only through a prudent life: Satguru Mata Sudiksha Ji

सोनीपत: सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज, निरंकारी संत समागम में कार्यक्रम प्रस्तुत करते हुए श्रद्धालु।

सोनीपत, अजीत कुमार। निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा महाराज ने कहा कि निराकार परमात्मा ने जो यह जगत रचा है, उसकी हर वस्तु अत्यंत खूबसूरत है। मनुष्य को इसका आनंद विवेकपूर्वक उठाना चाहिए, दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। वे समालखा-गन्नौर हल्दाना बॉर्डर स्थित निरंकारी आध्यात्मिक स्थल पर आयोजित चार दिवसीय 78वें निरंकारी संत समागम के समापन अवसर पर सोमवार की रात को बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि आत्ममंथन की दिव्य शिक्षाओं से जीवन संवरता है और इससे न केवल व्यक्तिगत कल्याण होता है, बल्कि विश्व कल्याण का मार्ग भी प्रशस्त होता है।

सतगुरु माता जी ने कहा कि जीवन में अनेक चिंताजनक विचार और परिस्थितियां आती हैं, पर आत्ममंथन की साधना से उन्हें सीमित किया जा सकता है। जब मनुष्य हर कार्य में ईश्वर की उपस्थिति को महसूस करता है, तो उसके भीतर की उथल-पुथल शांत हो जाती है और मन, बुद्धि व आत्मा तीनों का विकास होता है। गुरु की सिखलाई में रहकर किया गया यह आत्मिक चिंतन व्यक्ति को ऊर्जा, संतुलन और स्थिरता प्रदान करता है।

True enjoyment of God's creation is possible only through a prudent life: Satguru Mata Sudiksha Ji
सोनीपत: सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज, निरंकारी संत समागम में कार्यक्रम प्रस्तुत करते हुए श्रद्धालु।

उन्होंने दृष्टिकोण की शक्ति पर उदाहरण देते हुए कहा कि किसी बगीचे में एक व्यक्ति फूल देखकर भी कांटों की शिकायत करता है, जबकि दूसरा उन्हीं फूलों की सुंदरता और सुगंध में आनंद पाता है। यह अंतर केवल दृष्टिकोण का है। एक मनुष्य संकीर्णता में उलझा रहता है, दूसरा विशालता में जीता है। सच्चा भक्त वही है जो सकारात्मकता अपनाता है और गुणों का संग्रह करता है। ऐसा व्यक्ति हर परिस्थिति में आनंद और शांति का अनुभव करता है। सतगुरु माता जी ने आह्वान किया कि श्रद्धालु समागम से प्राप्त दिव्य शिक्षाओं को जीवन में आत्मसात करें और सत्य, प्रेम व सद्भाव के संदेश को मानवता तक पहुँचाएं।

समापन सत्र में समागम कमेटी के समन्वयक और संत निरंकारी मंडल के सचिव जोगिंदर सुखीजा ने सतगुरु माता जी और निरंकारी राजपिता जी के दिव्य आशीषों के लिए आभार व्यक्त किया तथा समागम में सहयोग देने वाले सभी सरकारी विभागों को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि इस बार पहले से अधिक संख्या में संगतों ने भाग लिया और सभी के मंगल की प्रार्थना की।

इस वर्ष समागम के दौरान चारों दिन कवि दरबार आयोजित हुए, जिनमें 38 कवियों ने आत्ममंथन विषय पर हिंदी, पंजाबी, हरियाणवी, मराठी, अंग्रेजी, उर्दू व अन्य भाषाओं में अपनी कविताएं प्रस्तुत कीं। श्रोताओं ने इन काव्य प्रस्तुतियों का भरपूर आनंद लिया और प्रेम, शांति व आत्मजागरण के संदेशों को आत्मसात किया।

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